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पंचम कर्मपन्य
बाईसवां भूयस्कार, आयु सहित उनहत्तर का बंध करने से तेईसवां भयस्कार तथा नामकर्म की छब्बीस प्रकृतियों के माथ सत्तर प्रकृतियों को बांघने से चौबीसवां भयस्कार तथा आयु रहित और नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों के साथ इकहत्तर को बांधने पर पच्चीसवां भूयस्कार, नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों के साथ बहत्तर के बंध में छब्बीसवां भूयस्कार, आयु सहित तिहत्तर का बंध करने पर सताईसवां भूयस्कार और नामकर्म की तीस बांधते ज्ञानावरण की पांच, दर्शनावरण की नौ, बेदनीय की एक, मोहनीय की बाईस, आयु की एक, नाम को तीस, गोन की एक और अंतराय की पांच, इस प्रकार चौहत्तर का बंध करने से अट्ठाईसवां भूयस्कार होता है।
यहां प्रकारान्तर से अनेक बंधस्थानक संभव हैं, जिनका स्वयं विचार कर लेना चाहिए। इसी प्रकार से अट्ठाईस अल्पतर बंध भी विपरीतपने (आरोहण) से होते हैं और अवस्थित बंध उनतीस समझना चाहिए । अवक्तव्य बंध संभव नहीं है। सर्व उत्तर प्रकृतियों का अबन्धक अयोगि गुणस्थान में जीव होता है, उस गुणस्थान से पतन नहीं होने के कारण अवक्तव्य बंध नहीं होता है ।
सामान्य से उत्तर प्रकृतियों में भूयस्कार आदि बंधों का कथन करने के बाद अब आगे की गाथाओं में प्रत्येक कर्म को उत्तर प्रकृतियों में बंधों को बतलाते हैं। उत्तर प्रकृतियों के भूयस्कार आदि बंध
नव छचड़ दसे दुदु तिदु मोहे दु इगवीस सत्तरस । तेरस नव पण चउ ति दुइको नव अठ्ठ दस बुन्नि ॥२४॥
शब्दार्थ-नव-नौ प्रकृति का, छ–छह प्रकृति का, चउचार प्रकृति का बंधस्थान, वंसे -दर्शनावरण को उत्तर प्रकृतियों का, दु-दो भूमस्कार बंध, कु-दो अल्पतर बंध, ति-तीन