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पंचम कर्मग्रन्य
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इस प्रकार हैं- एक, सुवह अठारह उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाईन, छब्बीस, तिरेपन, चीन, पतपन छप्पन सुनावन अदावन, उनसठ. साठ, इकसठ, तिरेसठ, चौसठ, पंसठ, छियासठ सड़सठ, अड़सठ, उनहत्तर, सत्तर, इकहत्तर, बहत्तर, तिहत्तर और चौहत्तर । ये उनतीस बंधस्थान हैं, जिनमें भूस्कार बन्ध अट्ठाईस होते हैं। जो इस प्रकार हैं-
उपशान्तमोह गुणस्थान में एक वेदनीय का बंध कर गिरते समय दसवें गुणस्थान में ज्ञानावरण पांच, दर्शनावरण चार, अंतराय यांच उच्च गोल और यशः कीर्ति के साथ वेदनीय का बन्ध करने से सतह प्रकृति के बंध से प्रथम समय में पहला भूयस्कार बंध होता है ।
दसवें गुणस्थान से पतित होने पर नौवें गुणस्थान में संञ्चालन लोभ के साथ अठारह प्रकृति का बंध करने पर दूसरा भूयस्कार बंध होता है। संज्वलन माया के साथ उन्नीस प्रकृतियों को बांधने से तीसरा भूयस्कार बन्ध और संज्वलन मान के साथ बीस को बांधने से चौथा भूयस्कार बन्ध, संज्वलन क्रोध के साथ इक्कीस का बंध करने से पांचवां भूयस्कार बंध तथा पुरुष वेद के साथ बाईल का बंध करने से छठा भूयम्कार और उसके साथ हाम्य, रति, भय और जुगुप्सा इन चार प्रकृतियों का अधिक बन्ध करने से अपूर्वकरण के सातवें भाग में छब्बीस का बंध करने से सातवां भूयस्कार बन्ध होता है। उसके मध्य आठवें गुणस्थान के छठे भाग में देवप्रायोग्य नामकर्म की सत्ताईस प्रकृतियों का बंध करने से तिरेपन का बंध, यह आठवां भूयस्कार, पुनः तीर्थंकर नामकर्म सहित देवप्रायोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर चौवन के वंध का नौवां भूयस्कार बन्ध तथा आहारकनिक सहित तीस का बंध करने से पचपन का बंध करने पर दसवां भूयस्कार और इन पचपन को तीर्थंकर नामकर्म सहित बांधने से छप्पन