Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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विशेष – इस गाया में चार प्रकृतियों की तो निश्चित जघन्य स्थिति व शेष की जघन्य स्थिति जानने के लिये सूत्र का संकेत किया है।
गाथा में चार प्रकृतियों के नाम इस प्रकार बताये हैं-संज्वलन क्रोध, संञ्चालन मान, संज्वलन माया और पुरुष वेद, इनका जघन्य स्थितिबंध क्रमशः दो मास एक मास, एक पक्ष (पन्द्रह दिन) और आठ वर्ष है। यह जघन्य स्थितिबंध अपनी-अपनी बंधव्युच्छित्ति के काल में होता है और इनका बंधविच्छेद नीचे गुणस्थान में होता है ।
शेष प्रकृतियों को जघन्य स्थिति जानने के लिये ग्रन्थकार ने एक नियम बतलाया है कि उन उन प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति जो सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपन है, का भाग देने पर प्राप्त लब्ध उनको जघन्य स्थिति है । जघन्य स्थिति को बतलाने वाला यह नियम ८५ प्रकृतियों पर लागू होता है । क्योंकि तीर्थंकर और आहारकद्विक तथा पूर्व गाथा में निर्दिष्ट अठारह प्रकृतियों व इस गाथा में बताई चार प्रकृतियों की जघन्य स्थिति का कथन किया जा चुका है तथा चार आयु व क्रियषट्क की जघन्य स्थिति का कथन आगे किया जा रहा है । अतः बंधयोग्य १२० प्रकृतियों में में ३, १८, ४, ४, ६ ३५ प्रकृतियों को कम करने पर ८५ प्रकृतियां शेष रहती हैं। जिनकी जधन्य स्थिति इस प्रकार है
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निद्रापंचक और असातावेदनीय की जघन्य स्थिति सागर, मिथ्यात्व की एक सागर, अनंतानुबंधी क्रोध आदि बारह कषायों की सागर, स्वीवेद और मनुष्य द्विककी २४ सागर ( के ऊपर नीचे के अंकों को ५ से काटने से ), सूक्ष्मत्रिक, विकलनिकको २ के अंक से काटने से ), स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, हास्य, रति, शुभ विहायोगति, वज्रऋषभनाराच संहनन, समचतुरस्र संस्थान, सुगन्ध, शुक्लवर्ण, मधुररस, मृदु, लघु, स्निग्ध और उष्ण स्पर्श की सागर तथा