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पंचम कर्म ग्रन्थ
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कर्म प्रकृतियों की जघन्य स्थिति की विवेचना करने में आगे की गाथा के उक्त पद की अनुवृत्ति कर लेने पर किसी प्रकार की विभिन्नता नहीं रहती है। क्योंकि यह पहले संकेत कर आये हैं कि जघन्य स्थिति ' का बंध एकेन्द्रिय जीव करते हैं।
कुछ एक प्रकृतियों को छोड़कर शेष प्रकृतियों की सामान्य से जघन्य स्थिति बतलाकर अब एकेन्द्रिय आदि जीवों के योग्य प्रकृतियों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति तथा आयु कर्म की उत्तर प्रकृतियों की जघन्य स्थिति बतलाते हैं ।
अयमुक्होसो गिदिसु पलियासंखसहोण लहुबंधो । कमसो पणवीसाए पन्नासप्रसहस्ससंगुणिओ ||३७|| विगलिसन्विसु जिट्ठो कमिज पल्लसंखभागूगो । सुरनरपाउ समावस सहस्स सेसाउ खुड्डभयं ॥ ३८ ॥ शब्दार्थ - अयं यह (पूर्वोक्त रीति में बनाया गया), उनकोसो – उत्कृष्ट स्थितिबन्ध, गिबिसु एकेन्द्रिय का, पलियासहीण - पल्योगम के असंख्यातवें भाग होन, लघुबंधो जघन्यस्थितिवध, कमसो - अनुक्रम से, पणवीसाए हजार से, संगुणिओ
पस्चीस से पन्ना पचास
गुणा करने पर
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से, सब मौ से, सहस विगलिसग्नि विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जिडो– उत्कृष्ट स्थितिबंध, कणिट्ठउ-जघन्य स्थितिबंध, पल्ल संभागो पल्योपम के संख्यातवें भाग को कम करने से, सुरनरपाच देवायु और नरकायु की, समा वर्ष, इससहस्स– दस हजार, सेसा बाकी की आयु की, खुट्टम - क्षुद्रभव |
गाथायें एकेन्द्रिय जीवों के पूर्वोक्त स्थितिबंध उत्कृष्ट और जघन्य पत्योपम के असंख्यातवें भाग कम समझना
१. जघन्य स्थितिबंध के संबंध में विशेष स्पष्टोकरण परिशिष्ट में देखिये ।
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