Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पंचम कर्मग्रन्थ
साता वेदनीय, यश कीति, उच्चगोत्र, मतिज्ञानावरण आदि ज्ञानावरण कर्म की पांच प्रकृतियां, चक्षुदर्शनावरण आदि चार दर्शनावरण कर्म की प्रकृतियां तथा दानान्तराय आदि पांच अन्तराय कर्म की प्रकृतियां, कुल सत्रह प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध का स्वामी सूक्ष्मसंपराय नामक दसवें गुणस्थानवर्ती क्षपक है-सायजसुच्चावरणा विग्धं सुहुमो । क्योंकि सातावेदनीय के सिवाय सोलह प्रकृतियां इसी गुणस्थान तक बंधती हैं, अतः उनके बंधकों में यही गुणस्थान विशेष विशुद्ध है । यद्यपि साता वेदनीय का बंध तेरहवें गुणस्थान तक होता है, तथापि स्थितिबंध दसवें गुणस्थान तक ही होता है, क्योंकि स्थिति बंध का कारण कषाय है। संज्वलन लोभ कषाय का उदय दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक रहता है, जिससे साता वेदनीय का जघन्य स्थितिबंध भी दसवें गुणस्थान में ही बतलाया है। ___ आयुकर्म की चारों प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध असंज्ञी जीव भी करते हैं और संज्ञी जीव भी करते हैं-सन्नी वि आउ । उनमें से देवायु और नरकायु का जघन्य स्थितिबंध पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य करते हैं तथा मनुष्यायु और तिर्थ चायु का जघन्य स्थितिबंध एकेन्द्रिय आदि ।
इस प्रकार से आहारकद्विक आदि आयुचतुष्क तक में अन्तर्भूत ३५ प्रकृतियों को बंधयोग्य १२० प्रकृतियों में से कम कर देने पर शेष रही ८५ प्रकृतियों का जंघन्य स्थितिबंध-बायरपज्जेगिदिउ सेसाणं -- बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय जीव करते हैं। क्योंकि प्रकृतियों के स्थितिबंध को बतलाने के प्रसंग में यह संकेत कर आये हैं कि इन प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय जीव को ही होता है। इन प्रकृतियों के बंधकों में वही विशेष विशुद्धि वाला होता है और अन्य एकेन्द्रिय जीव उतनी विशुद्धि न होने के कारण उक्त प्रकृतियों