Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पचम कर्मग्रन्थ
११ हीन्द्रिय यो और अपति का जाय स्थिति उनको अपेक्षा संख्यात गुणा और विशेषाधिक और उसकी अपेक्षा द्वीन्द्रिय अपर्याप्त और पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक, वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय में भी इसी प्रकार (द्वीन्द्रिय में कहे गये अनुसार) जानना चाहिये, किन्तु इतना विशेष है कि द्वीन्द्रिय पर्याप्त और असंत्री अपर्याप्त में संख्यात गुणा समझना चाहिए।
उसकी अपेक्षा साधु. का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा और उसकी अपेक्षा देशविरति का जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबंध, सम्यग्दृष्टि के चारों स्थितिबंध और संज्ञी पंचे. न्द्रिय मिथ्याइष्टि के चारों स्थितिबन्ध अनुक्रम से संख्यात गुण होते हैं।
विशेषार्थ-- इन तीन गाथाओं में स्थितिबंध का अल्पबहुत्व बतलाया गया है कि किस जीव को अधिक स्थितिबंध होता है और किस जीव को कम स्थितिबंध । बंध की इस हीनाधिकता को स्थितिबंध का अल्पबहुत्व कहते हैं।
स्थितिबंध के इस अल्पबहुत्व के प्रमाण का कथन प्रारंभ करते हुए कहा है कि 'जइलहुबंधो' यानी साघु को सबसे कम स्थितिबंध होता है और वह भी सूक्ष्मसंपराय नामक दसवें गुणस्थान में। इसका कारण यह है कि दसवें गुणस्थान तक सूक्ष्म कषाय का सद्भाव पाया जाता है और कषाय के द्वारा स्थितिबंध होता है। दसवे गुणस्थान से हीन स्थितिबंध किसी भी जीव को नहीं होता है । यद्यपि ग्यारहवें आदि आगे के गुणस्थानों में एक समय का स्थितिबंध होता है, किन्तु वे गुणस्थान कषायरहित हैं, अतः वहां स्थितिबंध की विवक्षा नहीं है। इसलिये दसवें गुणस्थान से ही स्थितिबंध के अल्प