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पनम कर्मग्रन्थ
के कारण उनका बंध नहीं हुआ । वहां मरते समय क्षयोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करके मनायगति में जन्म लेकर महावन धारण करके दो बार विजयादिक में जन्म लेकर पुनः मनुष्य हुआ। वहां अन्तमुहूर्त के लिये सम्यकत्व से च्युत होकर तीसरे मिश्र गुणस्थान' में चला गया । पुनः क्षयोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करके तीन बार अच्युत स्वर्ग में जन्म लिया। इस प्रकार वेयक के ३१ सागर, बिजयादिक में दो बार जन्म लेने के ६६ मागर और तीन बार अच्युत स्वर्ग में जन्म लेने से वहां के ६६ सागर मिलाने से १६३ सागर होते हैं। इसमें देवकुरु भोगभुमिज की आयु तीन पल्ल, देवगति को आयु एक पल्य इस प्रकार चार पल्य और मिला देना चाहिए । बीच में जो मनुष्यभव धारण किये उन्हें भी उसमें जोड़कर मनुष्यभव सहित चार पल्प अधिक एक सौ सठ सागरोपम उक्त सात प्रकृतियों का अबंधकाल होता है । १ का प्रथिक मत से चौथ गुणस्थान से धुत होकर जीव तीसरे गुणस्थान में पा सकता है । लेकिन मैद्धांतिक मल इसके विरुद्ध हैमिच्छता मंकती अविरुद्धा होई सम्ममी से मु । मीसाइ वा दो सम्मा मिन्छन उण मीस || -हत्क- भाष्य ११४ - जीव मिथ्यात्व गुणस्थान मे वीग और चोये गुणस्थान में जा सकता है, इसमें कोई विरोध नहीं हैं तथा मिश्र गृणस्थान से भी पहले और चौथे गुणस्थान में जा सकता है, किंतु सम्यमान ने च्युस होकर मिथ्यात्व में जा सकता है. मिश्र गुणस्थान में नहीं जा सकता है।
पलियाई तिनि भोगाणिम्मि ममपच्चयं पलिय मेगं । सोहम्मे मम्मण नरभवे सब विरईण ॥ मिच्छी भवपच्चपनो नेविउजे सागराइं इगतोस । अंशमुख्नुणाई सम्मत्तं तम्मि लिहिणं ॥ विरयनरपवनरिमो अगुत्तग्मगे 7 अयर छात्रट्टी । मिस महत्तमेगं कामिय मणुलो पुणो विग्ओं ॥ छाउटुी अयाणं अच्चुयए विरयन रभवंतरितो । तिरिनरवतिगुज्जोयाण एस कालो अबंधमि ।।