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शतक
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इसीलिए बंध को प्राप्त कर्म पुद्गलों में फल देने की जो शक्ति होती हैं, उसे रसबंध अथवा अनुभाग बंध कहते हैं। इसको अब उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं— जैसे सुखा घाम नीरस होता है, लेकिन ऊंटनी, भैंस, गाय और बकरी के पेट में पहुँचकर वह दूध के रूप में परिणत होता है तथा उसके रस में चिकनाई की हीनाधिकता देखी जाती है। अर्थात् उसी सूखे घास को खाकर ऊंटनी खूब गाढ़ा दूध देती है और उसमे चिकनाई भी बहुत अधिक होती है। भैंस के दूध में उससे कम गाढ़ापन और चिकनाई रहती है। गाय के दूध में उससे भी कम गाढ़ापन और निकताई है तथा बकरी के दूध में गाय के दूध से भी कम गाढापन व चिकनाई होती है। जैसे ही कार भिन्न-भिन्न पशुओं के पेट में जाकर भिन्न-भिन्न रस रूप परिणत होता है, उसी प्रकार एक ही प्रकार के कर्म परमाणु मित्र- भिन्न जीवों के भिन्न-भिन्न कपाय रूप परिणामों का निमित पाकर भिन्न-भिन्न रस वाले हो जाते हैं । जो यथासमय अपना फल देते हैं ।
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जैसे ऊंटनी के दूध में अधिक शक्ति होती है और बकरी के दुध में कम 1 जैसे ही शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार की प्रकृतियों का अनुभाग तीव्र भी होता है और मंद भी । अर्थात् अनुभाग बंध के दो प्रकार हैं—तीय अनुभाग बंध और मंद अनुभाग बंध | ये दोनों प्रकार के अनुभाग बंध शुभ प्रकृतियों में भी होते हैं और अशुभ प्रकृतियों में भी । इसीलिये ग्रन्थकार ते अनुभाग बंध का वर्णन शुभ और अशुभ प्रकृतियों के तीव्र और मंद अनुभाग बंध के कारणों को बतलाते हुए प्रारंभ किया है ।
अशुभ और शुभ प्रकृतियों के तीव्र और मंद अनुभाग बंध होने के कारणों को बतलाते हुए कहा है कि संक्लेश परिणामों से अशुभ प्रकृतियों में तीव्र अनुभाग बंध होता है और विशुद्ध भावों से शुभ