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पंचम कर्म ग्रन्थ
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___ यद्यपि उत्कृष्ट स्थितिबंध तीव्र कषाय से होता है, लेकिन कषाय की अभिव्यग्नि योग द्वारा होती है । अनः केवल कवाय से ही स्थितिबंध नहीं होता है, किन्तु उसके साथ योग भी रहता है। इसलिये अत्र सब जीवों में योग के अल्पबहुत्व और उसकी स्थिति पर यहां विचार किया जा रहा है। योग का अस्पबहुत्व
सुहमनिमोबाइखणपजोग बायरविाल प्रमणमगा। अपज्ज लह पढमदुगुरु पजहस्पिरो असंखगुणो ॥५३॥ अपजत्त'ससुधकोसी पज्जाहन्नियर एव ठिठाणा । अपजेवर संखगुणा परमपजाबिए असंच गुणा ॥५४॥
शब्दार्थ-सुहमनिगोय--सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक, आइपण ... प्रथम समय में (उत्पत्ति के), अप्पजोग - अल्पयोग, बायर -वादर एकेन्द्रिय, य-और, सिंगलअमणमणा विकत्रिक, असजी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचन्द्रिय, अपन-अपर्याप्त के, लहजघन्य योग, पढमकु-प्रयटिक (अपयात मुश्म, बादर) का, मुगउत्कृष्ट योग, पजस्सियरो–पर्याप्त का जघन्य और उत्कृष्ट योग, असंखगुणो - असंख्यात गुणा ।
अपजस्त- अपर्याप्त, तस -प्रस का, उक्कोसो -. उत्कृष्ट योग, परजजहान - पर्याप्त स वा जघन्य योग, पर और इतर (उत्कृष्ट योग), एव .. इस प्रकार, ठिठाणा -स्थिति के धान, अपजेयर - अपर्याप्त की अपेक्षा पर्याप्त के, संखगुणा=सख्यात गुणा, परं-. परन्तु. अपजबिए -अपर्याप्त द्वौन्दिय में. असंखगगा असंध्यान गुणा ।
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असमस्त' इति पाठान्तरे ।