________________
पंचम कर्मग्रन्थ
१६. उससे चतुरिन्द्रिय लक्ष्य का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। १७. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय लभ्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात
गुणा है। १८. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात
गुणा है। १६, उससे द्वीन्द्रिय' पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । २०. उससे श्रीन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । २१. उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। २२. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गणा है। २३. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुण है । २४. उससे Tोन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गृणा है । २५. उससे श्रीन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। २६. उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । २७. उससे असंज्ञी पंचे० पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। २८. उससे संशी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है।
इस प्रकार से चौदह जीधसमासों में जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से योगों के २८ स्थान होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त में कुछ और स्थान दूसरे ग्रन्थों में कहे हैं। जो इस प्रकार हैं-- २६. संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के उत्कृष्ट योग से अनुत्तरवासी देवों का
उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । ३०. उससे अंवेयकवासी देवों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। ३१. उससे भोगभूमिज तियंच और मनुष्यों का उत्कृष्ट योग असंख्यात
गुणा है। ३२. उससे आहारक शरीर वालों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है ।