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इस प्रकार के स्थितिबंध के अल्पबहुत्व को अपेक्षा से उत्कृष्ट, जघन्य स्थितिबंध के स्वामियों को बतलाकर अब स्थिति को शुभाशुभता और उसके कारण को बतलाते हैं।
स्थितिबंध को
शुभाशुभता
सव्वाण विजिट्ठठिई असुत्रा जं साइकिले से णं । मुतं नरअमरतिरिय उं ॥ ५२ ॥
इयरा विसोहिओ पुण शब्दार्थ सव्वाण वि उत्कृष्ट स्थिति असुभा - अशुभ, स्थिति), अइसफिले सेण इयरा जघन्यस्थिति, विसोहि
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तीव्र
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तर क
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सभी कर्म प्रकृतियों की जिट्ठठिद्द
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अं- इनलिये, सा- वह (उत्कृष्ट संक्लेण (कथाय) के उदय होने से,
विशुद्धि द्वारा, पुण-तथा,
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सुतुं -- छोड़कर नरअमरतिरिया - मनुष्य, देव और तिच आयु को ।
गाथार्थ मनुष्य, देव और निर्यंच आयु के सिवाय मभी प्रकृतियों को उत्कृष्ट स्थिति अति मंत्रले परिणामों से बंधने के कारण अशुभ कही जाती है । जघन्य स्थिति का बंध विद्युद्धि द्वारा होता है।
विशेषार्थ गाथा में देवावु मनुष्यायु और निर्यत्रायु को छोड़कर
शेष सभी प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति को अशुभ और जघन्य स्थिति को शुभ बतलाया है । इसका कारण जन साधारण की उस भ्रांति का निराकरण करता है कि वह शुभ प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति को अधिक समय तक शुभ फल देने के कारण अच्छा और अशुभ प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति को अधिक समय तक अशुभ फल देने के कारण बुरा मानता है। लेकिन शास्त्रकारों का कहना है कि अधिक स्थिति का बंधना अच्छा नहीं है । क्योंकि स्थितिबंध का मूल कारण कपाय है और कषाय की श्र ेणी के अनुसार स्थितिबंध भी उसी श्र ेणी