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पंचम कर्मग्रन्थ
गाथार्थ संज्वलन कषाय चतुष्क, नौ आवरण (पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण) और पांच अंतराय के अजघन्य बंध में चारों भेद होते हैं। शेष तोन बंधों के सादि और अध्रुव यह दो विकल्प तथा शेष प्रकृतियों के चारों बंबों के भी सादि और अध्रुव ये दो ही विकल्प होते हैं।
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विशेषार्य - इस गाथा में उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट आदि बंधों के सादि आदि भेद बतलाये हैं । जैसा मूल प्रकृतियों में सबसे पहले अजघन्य बंध के विकल्पों का कथन किया गया है, वैसे ही उत्तर प्रक्रतियों भी अजघन्य बंध के विकल्पों का यहां विवेचन किया जा रहा है । १२० प्रकृतियों में से अजधन्य बंध वाली प्रतियां सिफ है । जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं— संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनपर्यायज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण तथा दान, लोभ, भोग, उपयोग, वीर्य अन्तराय — संजलणावरणनवगविन्धाणं । इन अठारह प्रकृतियों की अजघन्य स्थिति की शुरूआत उपशम श्रोणि से पतित होने वाले के होती है ।
इन अठारह प्रकृतियों के अजघन्य बंध के सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव ये चारों ही विकल्प होते हैं, जो मूल कर्मों के अजयम्य बंध की तरह ही जानना चाहिये। उपशम श्रेणि में इन अठारह प्रकृतियों का बंधविच्छेद करके जब वहां से च्युत होकर पुनः उनका अजघन्य बंध करते हैं तो वह बंध सादि और उपशम श्र ेणि में आरोहण करने से पहले वह बंध अनादि होता है। अभव्य की अपेक्षा वही बंध ध्रुव और भव्य की अपेक्षा अध्रुव है। इसीलिये इन प्रकृतियों के अजघन्य