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इस प्रकार से आयुकर्म के सिवाय शेष ज्ञानावरण आदि सात कमी के उत्कृष्ट आदि चारों बंधत्रकारों के सादि, अनादि आदि चार बंधभेदों की अपेक्षा से प्रत्येक के दस-दस और आयुकर्म के आठ भंग होने से कुल ७८ भंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं
ज्ञानावरण के उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य बंध में से प्रत्येक के सादि और अध्रुव यह दो विकल्प होते हैं, अतः तीनों के कुल मिलाकर छह भंग हुए तथा अजघन्य बंध के सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव ये चारों विकल्प होने से पूर्व के छह भेदों को इन चार के साथ मिलाने से कुल दस भंग हो जाते हैं। इसी प्रकार से दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, नाम, गोत्र और अंतराय के बंधभेदों में प्रत्येक के दस-दस भंग जानना चाहिये। कामुकर्म के नी उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य ये चारों प्रकार के बंध होते हैं, लेकिन ये चारों प्रत्येक सादि और अध्रुब विकल्प वाले होने से प्रत्येक के दो-दो भंग हैं और कुल मिलाकर आठ भंग होते हैं। इस प्रकार १०+१०+१०+१०+१० +१०+१०+८=७८ भंग ज्ञानावरण आदि आठ मूल कर्मों के होते हैं ।
शतक
मुल कर्मों के अजघन्य आदि बंधों में सादि आदि भंगों का निरूपण करने के बाद अब उत्तर प्रकृतियों में उनका कथन करते हैं । लभेओ अजहतो संजलणावरण नवगविधाणं । सेसतिगि साइअधुवो तह चउहा सेसपयडीर्ण ॥४७॥
शब्दार्थ - चउभेभो चार भेद, अजस्रो- अजघन्य बंध में. संजणावरण नवग विग्धाणं संज्वलन कपाय, नो वावरण और अन्तराय के सेसतिमि शेष तीन बंधों में, साइअमृषो सादि और अघुम, तह- से ही कहा— चारों बंध प्रकारों में, सेसपयजीणं बाकी की प्रकृतियों के ।
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