Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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यानी एक मुहूर्त ४८ मिनट के बराबर होता है और एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छ्वास होते हैं। अतः ३७७३ में ४८ से भाग देने पर एक मिनट में साढ़े अठहत्तर के लगभग श्वासोच्छ्वास आते हैं, अर्थात् एक श्वासोच्छ्वास का काल एक सेकिण्ड से भो कम होता है और उतने काल में निगोदिया जीव सत्रह से भी कुछ अधिक बार जन्म धारण करता है । इससे क्षुल्लक भब की क्षुद्रता का सरलता से अनुमान किया जा सकता है ।
क्षुल्लक भव की इस सूक्ष्मता को गाया में स्पष्ट किया गया है कि क्षुल्लक भव का समय एक श्वासोच्छ्वास के सत्रह से भी कुछ अधिक अंशों में से एक अंश है।
इस प्रकार से के सिवाय शेष कृतियों के स्थितिबंध और सभी प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध का निरूपण करके अब आगे उनके उत्कृष्ट स्थितिबंध के स्वामियां को बतलाते हैं ।
अविरसम्म तिथं आहारयुगामराउ य पमत्तो । मिच्छद्दिट्ठी बंघइ जिट्ठठिई सेसपघडीणं ॥ ४२ ॥
शब्दार्थ — अरियसम्म अविरत -
करें।
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सम्यष्टि मनुष्य, आहारगं बाहारकद्विक, अमराउ – देवायु को, य— और पमत्तो - प्रमत्तविरति मिच्छदिड्डी - मिध्यादृष्टि, बधद्द बांधता है, निट्टकिई—उत्कृष्ट स्थिति, सेस पडणं-दोष प्रकृतियों की ।
तिथं तीर्थंकर नामकर्म
शतक
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गाथार्थ – अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्य तीर्थंकर नामकर्म के, प्रमत्तविरति आहारकद्विक और देवायु के और मिथ्यादृष्टि दोष प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध को करता है ।