Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पचम कर्मग्रन्थ
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इसीलिये एक मुहूर्त में श्वासोच्छ्वासों की संख्या मालूम करने के लिए १ मुहर्त x २ घटिका ४ ३७ लव ७ स्तोक ४७ उच्छ्वास, इस प्रकार सबको गुणा करने पर ३७७३ संख्या आती है तथा एक मुहूर्त में एक निगोदिया जीव ६५५३६ वार. जन्म लेता है, जिससे ६५५३६ में ३७७३ से भाग देने पर १७१लब्ध आता है, अतः एक श्वासोच्छ्वास काल में सत्रह से कुछ अधिक क्षुद्र भवां का प्रमाण जानना चाहिये ।' अर्थात् एक क्षुल्लक भव का काल एक उच्छ्वास-निश्वास काल के कुछ अधिक सत्रहवें भाग प्रमाण होता है और उतने ही समय में दो सौ छप्पन आवली होती हैं।
आधुनिक कालगणना के अनुसार क्षुल्लक भव के समय का प्रमाण इस प्रकार निकाला जायेगा कि एक मुहूर्त में अड़तालीस मिनट होते हैं
१ दिगम्बर साहित्य में एक श्वासोच्छवास काल में १८ क्षुल्लक मत्र माने हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
तिणिसया छत्तीसा छावटि सहस्सगाणि मरणाणि । अंतोमुहुसकाले तावदिया चव खुद्भवा । -गो० जीवकांड १२३
लमध्यपर्याप्तक जोव एक अन्त मुहूर्त में ६६३३६ वार मरण कर उसने ही भवों -- जन्मो को भी धारण करता है, अत: एक अन्त हूत में उतने ही अर्थात ६६३३६ क्षुद्रभाव होते हैं । इन भवों को क्षुद्रभव इसलिए कहते हैं कि इससे अल्पस्थिति वाला अन्य कोई भी भव नहीं पाया जाता हैं । इन भवों में से प्रत्येक का कालप्रमाण श्वास का अठारहवां भाग है। फलत: त्रैराणिक के अनुसार ६६३३६ भवों के प्रयासों का प्रमाण ३६८५६ होता है । इतने उच्छ्वासों के समूह प्रमाण अन्तर्मुहूर्त में पृथ्वी. कायिक में लेकर पंचेन्द्रिय तक लयपर्याप्तक जीवों के क्षुद्र भव ६६३३६ हो जाते हैं । ३७७३ उच्छ्वासों का एक मुहूर्त होता है तथा इन ६६३३६ भवों में से द्वीन्द्रिय के ८०, श्रीन्द्रिय के ६० चतुरिन्द्रिय के ४०, पंचेन्द्रिय के २४ और एकेन्द्रिय के ६६१३२ क्षुद्रभव होते है।