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शतक
एक मुहूर्त में पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस क्षुद्रभव होते हैं और एक क्षुद्रभव में दो सौ छप्पन आवली होती हैं ।
विशेषार्थ - गाथा में क्षुद्र ( क्षुल्लक) भव का स्वरूप बतलाया है 1 सम्पूर्ण भवों में सब से छोटे भव को क्षुल्लक भव' कहते हैं । यह भव निगोदिया जीव के होता है। क्योंकि निगोदिया जीव की स्थिति सब भवों की अपेक्षा अल्प होती है और वह भव मनुष्य व तियंत्र पर्याय में ही होता है। जिससे मनुष्य और तिथेच आयु की जघन्य स्थिति क्षुल्लक भव प्रमाण बतलाई है। क्षुल्लक भव का परिमाण इस प्रकार समझना चाहिए कि
जैन कालगणना के अनुसार असंख्यात समय की एक आवली होती है । संख्यात आवली का एक उच्छ्वास निश्वास होता है। एक निरोग, स्वस्थ, निश्चिन्त, तरुण पुरुष के एक बार श्वास लेने और त्यागने के काल को एक उच्छ्वास काल या श्वासोच्छ्वास काल कहते हैं । सात श्वासोच्छ्वास काल का एक स्तोक होता है। सात स्तोक का एक लब तथा साढ़े अड़तीस लव की एक नाली या घटिका होती है। दो घटिका का एक मुहूर्त होता है ।"
तु 1
१ कालो परमनिरुद्धो अविभाज्जो लं तु जाण समयं समया व असंखेज्जा हवइ हु उस्सासनिस्लासो ॥ उस्सासो निस्सासो यदोऽवि पात्ति भन्नए एक्को । पाणा व सत्त योवा योवाविय मत्त जबमाहु || अद्भुत्तमं तु वा अलवो देव नालिया हो ।
ज्योतिष्करण्डक, ६, १० समय कहते है । असंगत
काल के अत्यन्त सूक्ष्म अविभागी अश को समय का एक उच्छ्वास निवास होता है, उसे प्राण भी कहते हैं । सास प्राण का एक स्तोक, सात स्तोक का एक लय, साढ़े अड़तीस लव की एक नाली होती है। दो नाली का एक मुहूर्त होता है ये नालिया मुहुत्तो ।