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इसके अनुसार दर्शनावरण और वेदनीय वर्ग को उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़: कोड़ी सागर का भाग देने पर जो लब्ध आता है उसमें पत्य के असंख्यातवें भाग को कम कर देने पर निद्रापंचक और असाता वेदनीय की जघन्य स्थिति ज्ञात होती है। दर्शनमोहनीय वर्ग की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देने पर प्राप्त लब्ध एक सागर में पल्य का असंख्यातवां भाग कम करने पर मिथ्यात्व की जघन्य स्थिति होती है। कषायमोहनीय वर्ग की उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोडी सागर में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देकर लब्ध के सागर में से पल्य का असंख्यातवां भाग कम करने पर अनन्तानुबंधी क्रोधादि बारह कषायों की जघन्य स्थिति ज्ञात होती है। नोकषायमोहनीय वर्ग की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागर में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देकर लब्ध सागर में से पल्य का असंख्यातवां भाग कम करने पर पुरुष वेद के सिवाय शेष आठ नोकपायों की जघन्य स्थिति आती है। नामवर्ग और गोववर्ग की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोड़ी सागर में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देकर लब्ध में से पल्य का असंख्यातवां भाग कम कर देने पर वैक्रियषट्क, आहारकद्विक, तीर्थंकर, यश:कीर्ति को छोड़कर नामकर्म की शेष सत्तावन प्रकृतियों और नीचगोत्र की जघन्य स्थिति ज्ञात होती है।
यहां पर जो ८५ प्रकृतियों की जवन्य स्थिति बतलाई है, उसमें कर्मप्रकृति की विवेचना के अनुरूप पल्य के असंख्यातवें भाग को कम करने का संकेत इस गाथा में नहीं किया गया है, लेकिन आगे की गाथा में 'पलियासंखं सहीण लहुबंधों पद दिया है। जिसका अर्थ है पल्य के असंख्यातवें भाग को कम कर देने पर एकेन्द्रिय जीव को उनउन प्रकृतियों की अघन्य स्थिति होती है । अतः कर्मप्रकृति के अनुसार
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