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शेष शुभ और अशुभ वर्णादि चतुष्क की डे सागर, दूसरे संस्थान और संहतन की सागर, तीसरे संस्थान और संहनन की सागर, ate संस्थान और संहनन की सागर, पांचवें संस्थान और संहनन की सागर और शेष प्रकृतियों की सागर जघन्य स्थिति समझना चाहिये |
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इन ८५ प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय जीव ही कर सकते हैं। इन जघन्य स्थितियों में पल्य का असंख्यातवां भाग बढ़ा देने पर एकेन्द्रिय जीव की अपेक्षा से इन प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध का प्रमाण. जानना चाहिये ।"
गाथा के उत्तरार्धं - मेमाक्कोसाओ मत लिई जं लद्धं का उक्त विवेचन पंचसंग्रह के अनुसार किया गया हैं । लेकिन कर्मप्रकृति ग्रन्थ के अनुसार इसका विवेचन निम्न प्रकार से होगा
'उक्कोसाओ' का अर्थ उस उस प्रकृति की उत्कृष्ट स्थिति न लेकर वर्ग' की उत्कृष्ट स्थिति ग्रहण करना चाहिये। जैसे मतिज्ञानावरण आदि प्रकृतियों का समुदाय ज्ञानावरण वर्ग कहा जाता है। चक्षुदर्शनावरण आदि प्रकृतियों का समुदाय दर्शनावरण वर्ग है। साता वेदनीय आदि प्रकृतियों का वर्ग बेदनीय वर्ग है। दर्शनमोहनीय की उत्तर प्रकृतियों का समुदाय दर्शनमोहनीय वर्ग है । कषाय मोहनीय की प्रकृतियों का समुदाय कषाय मोहनीय वर्ग, नोकषाय मोहनीय
शतक
१ वध अवस्था में वर्णादि बार लिये जाते हैं, उनके मेद नहीं, तथा उनकी उत्कृष्ट स्थिति जीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम होती है । मत: चारों की जघन्य स्थिति सामान्य से 3 सागर को समझना चाहिये । वर्णचतुष्क के अवान्तर भेदों की स्थिति पंचसंग्रह के अनुसार बताई है।
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| पंचसंग्रह ५।५४
३ सजातीय प्रकृतियों के समुदाय को वर्ग कहते हैं ।
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