Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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चाहिए तथा अनुक्रम से पच्चीस, पचास, सो, हजार में गुणा करने पर -
विकलेन्द्रियों और असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थिति बन्ध होता है तथा जघन्य स्थितिबंध पल्योपम का संख्यातवां भाग न्यून है। देवाबु और नरकायु की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष तथा शे| आयुओं की क्षुद्रभव प्रमाण है। विशेषाध-चूर्व की गाथाओं में उत्तर प्रकृतियो को उत्कृष्ट और जधन्य स्थिति सामान्य से बतलाई है। लेकिन इन दो गाथाओं में एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, नौन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय को अपेक्षा उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति बतलाने के । साथ-साथ आयुकर्म के चारों भेदों की जघन्य स्थिति भी बतलाई है। ।
पूर्व गाथा में शेष ८५ प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध को बतलाने के लिये उन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति या उनके वर्ग की उत्कृष्ट । स्थिति में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने का जो विधान किया गया है, उसी को एकेन्द्रिय जीवों के उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध को निकालने के लिये भी काम में लाया जाता है। तदनुसार विवक्षित प्रकृतियों की पूर्व में बताई गई उत्कृष्टः स्थितियों में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देने पर जितना लब्ध आता है, उतना ही एकेन्द्रिय जीव के उस प्रकृति का उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है । जैसे कि पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, पाँच अंतराय और अमातावेदनीय, इन बीस प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है तो इसको मिथ्यात्व मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागरोपम का भाग देने पर प्राप्त लब्ध , सागर प्रमाण का उत्कृष्ट स्थितिबंध एकेन्द्रिय जीव का होगा। कर्मप्रकृति के मंतव्यानुसार इनके वर्गों की उत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यास्त्र मोहनीय