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पंचम कमग्नन्य
इस प्रकार से उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति और अबाधाकाल को बतलाकर अब आगे उनकी जघन्य स्थिति बतलाते हैं ।
लहुठिबंध मजलणलोहपविग्घनाणदंसेसु ।
मिनमुहुत्त ते अट्ट असुच्ने बारम | साए ॥३५॥ शब्दार्थ – लहटिइबंधो-जघन्य स्थितिबन्ध, संजलणलोह – मंत्र - जन लोभ, पणविग्ध --पांच अन्न गय, नागसेसु-ज्ञानावरण और दर्शनावरण का, भिन्नमुहुसं–अन्तर्मुहूतं, ते ... वह, अट्ठ-आठ गुहूर्त, जमुम्चे-पश की ति और उच्च गोत्र का, पारस –बारह मुहूर्त, यऔर, साए–साता वेदनीय का। गाथार्य-संज्वलन लोभ, पांच अंतराय, पांच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण का जघन्य स्थितिबंध अन्तमुहर्त है । यशःकीर्ति नामकर्म और उच्च गोत्र का आठ मुहूर्त तथा साता वेदनीय का बारह मुहूर्न जघन्य स्थितिबंध है । विशेषार्थ- पूर्व में कर्म प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बतलाया जा चुका है । इस गाथा से उनके जघन्य स्थितिबंध का कथन प्रारंभ करते हैं । इस गाथा में जिन प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध के प्रमाण का निर्देश किया है, उनमें धाती कर्मों की पन्द्रह और अघाती कर्मों की तीन प्रकृतियां हैं । विभागानुसार उनके नाम इस प्रकार है____घाती—मतिज्ञानावरण आदि पांच ज्ञानाबरण, चक्षुदर्शनावरण आदि चार दर्शनावरण, संज्वलन लोभ, दानान्तराय आदि पांच अन्तराय ।
अघाप्ती-यशःौति नामकर्म, उच्चगोत्र, साता वेदनीय ।
जघन्यस्थितिबंध के सम्बन्ध में यह सामान्य नियम है कि यह स्थितिबंध अपने-अपने बंधविच्छेद के समय होता है । अर्थात् जब उन प्रकृ. तियों का अन्त आता है, तभी उक्त जघन्य स्थितिबंध होता है।