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पंचम कर्मप्रत्य
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आयुकर्म की स्थिति में यह बात नहीं है । आयुकर्म की तेतीस सागर, तीन पल्य, पल्य का असंख्यातवां भाग आदि जो स्थिति बतलाई है, वह शुद्ध स्थिति है, उसमें अदाधाकाल संमिलित नहीं है । इस अन्तर का कारण यह है कि अन्य कर्मों की अबाधा स्थिति के अनु पात पर अवलंबित है जिससे वह सुनिश्चित है किन्तु आयुकर्म की अबाधा सुनिश्चित नहीं है। क्योंकि आयु के विभाग में भी आयुकर्म का बंध अवश्यंभावी नहीं है। विभाग के भी विभाग करते करते आठ विभाग पड़ते हैं । उनमें भी यदि आयु का बंध न हो तो मरण मे अन्तर्मुहूर्त पहले अवश्य हो आयु को बंध हो जाता है। इसी अनिश्चितता के कारण आयुकर्म की स्थिति में उसका अबाधाकाल संमिलित नहीं किया गया है ।
परभव संबंधी आयुबंध के संबंध में संग्रहणी सूत्र में भी इसी बात को स्पष्ट किया है
वर्धति देवनाराय असंखनरतिरि मास साऊ । परभवियांक सेसा निश्वरकम विभागमेसाऊ ॥ ३०१ ॥ सोखकमाया पुणे सेसतिमागे अव नवमभागे सतावीस इमेषा अंतमुत्ततिमेवादि ॥ ३०२ ॥१
देव, नारक और असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यच छह मास की आयु बाकी रहने पर और शेष निरुपक्रम आयु वाले जोव अपनी आयु का विभाग बाकी रहने पर परभव की आयु बांधते हैं । सोपक्रम आयु वाले जीव अपनी आयु के त्रिभाग में अथवा नौवें भाग में अथवा सत्ताईसवें भाग में परभव की आयु बांधते हैं। यदि इन त्रिभागों में भी आयु बंध नहीं कर पाते हैं तो अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में