Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
गई है और मोहनीय कर्म की स्थिति 'सत्तरी मोहे' पद से कि मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागरोपम की है तथा 'निरयसुराउँमि तित्तीसा पद द्वारा आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम बतला दी है। अतः इन नाम, गोत्र, मोहनीय और आयुकर्म से शेष रहे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अंतराय, इन चार कर्मों की स्थिति तीस कोडाकोड़ी सागरोपम समझना चाहिए ।
ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति बतलाने के बाद उनकी जघन्य स्थिति बतलाने के लिये कहा है 'बार मुहत्ता जहन्न वेयणिए' वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है, 'अट्ट नाम गोएसु' नाम और गोत्र कर्म की आस-भार. मुहर्त तथा इन वेतमीस । नाम और गोत्र कर्म से शेष रहे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, आयु और अंतराय इन पांच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त प्रमाण है--सेसएसुं मुहत्तंतो।
उक्त कथन का सारांश यह है कि धातिकर्म ज्ञानावरण, दर्शना- . वरण, अंतराय की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोड़ी सागरोपम, मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागरोपम तथा अघातीकर्म वेदनीय की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोड़ी सागरोपम, आयु की तेतीस सागरोपम और नाम व गोत्र की स्थिति बोस कोडाकोड़ी । सागरोपम है ५ तथा जघन्य स्थिति क्रमश: इस प्रकार है कि
१ (क) तीस कोटाकोडी तिघादितदियेसु वीस णामदुगे । सत्तरि मोहे सुद्ध' उवही आउस्स तेतीसं ।।
–गो० कर्मकांड १२७ (ख) आदितस्तिसणामन्त रायस्य च त्रिंशत्सागरोपम को टिकोट्यः परा
स्थितिः । सप्ततिर्मोहनीयस्य । नामगोत्रयोविंशतिः । त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाण्यायुष्कस्य । –तत्वार्थतन्त्र ८ । १५, १६, १७, १८