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है लब तीर्थंकर प्रकृति की सत्तावाला जीव तियंचगति में जाये बिना नहीं रह सकता है । तियंचगति में भ्रमण किये बिना इतनी लम्बी स्थिति पूर्ण नहीं होती है। क्योंकि पंचेन्द्रिय पर्याय का काल कुछ अधिक एक हजार सागर और वसकाय का काल कुछ अधिक दो हजार सागर बतलाया है ।' अतः इससे अधिक समय तक न कोई जीव लगातार पंचेन्द्रिय पर्याय में जन्म ले सकता है और न त्रसकाय में ही और अन्त कोड़ाकोड़ी सागरोपम स्थिति का बंध करके जीव इतने लम्बे काल को केवल नारक, मनुष्य और देव पर्याय में जन्म लेकर पूरा नहीं कर सकता है, इसलिये उसे तिर्यंचति में अवश्य जाना पड़ेगा।
दूसरी बात यह है कि तिर्यचगति में जीवों के तीर्थकर नामकर्म की सत्ता का निषेध किया है, अतः इतने काल को कहाँ पूर्ण करेगा और तीर्थंकर के भव से पूर्व के तीसरे भन्त्र में तीर्थंकर प्रकृति का बंध
हजार मुहूर्त होते हैं। जब इसने मुहूर्त अवांधा एक कोडाफोड़ी लागर को है तब एक मुहूर्त अबाधा कितनी स्थिति की होगी? इस प्रकार
राशिक करने पर एक कोडाकोड़ी में दस लाख अस्सी हजार मुहूर्त का भाग देने पर ६२५६२३६२४ लब्ध आता हे । इतने सागर प्रमाण स्थिति की एक महतं अबाधा होती है. यानी एक मुहूतं अबाधा इतने सागर प्रमाण स्थिति की है। इसी हिसाब से अन्तमुहर्त प्रमाण अबाधा
दाले कर्म की स्थिति जानना चाहिये । १. एगिदियाण णता दोणि सहस्सा तसाण काय ठिई 1
अयराण इग पणिदिसू नरतिरियाणं सगठ्ठ भवा ।। -पंचसंग्रह २।४६ २. अंतो कोडाकोडी ठिईए वि कहं न होइ निस्थपरे । नने किलियकाल निरिभो आप होइ र विरोहो ।।
-पंचसंग्रह ११४३