________________
पंचम कर्मग्रन्थ
१०१ कम इन तोन कमों को उत्तर प्रकृतियों में होते है, शेष पांच माँ' में उनकी संभावना नहीं है। क्योंकि ज्ञानावरण और अंतराग कर्म की पांचों प्रकृतिबां एक साथ हो बंधती हैं और एक साथ रुकती है। जिससे दोनों कर्मों का पंच प्रकृति रूप एक ही बन्धस्थान होता है और जब एक ही बेधस्थान है तो उसमें भूयस्कार आदि बंध संभव नहीं हैं । इस दशा में तो सर्वदा अवस्थित बन्ध रहता है । इसी प्रकार वेदनीय, आयु और गोत्रकर्म की एक समय में एक ही प्रकृति बंधती है । अतः इनमें भी भूयस्कार आदि बंध नहीं होते हैं ।
दर्शनावरण और. मोहनीय कर्म के बंधस्थानों व उनमें भूयस्कार आदि बंधों की संख्या नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिये । वर्शनावरण कर्म के बंधस्थान आदि की संख्या
दर्शनावरण कर्म की चक्षुदर्शनावरण आदि नौ प्रकृतियां हैं और
१ जानावरण, घेदनीय, आय, गोत्र, अंतराय । २ (क) तिगिण दस अट्ठ ठाणाणि सणावरणमा हणामाणं । एस्थेव य मुजगारा सेसेसेय हवे ठाण 11
-गो० कर्मकार ४५८ - दर्शनावरण, मोहनीय और नाम कर्म में क्रमशः तीन, दस और आठ बन्धस्थान होते हैं और इन्हीं में भुजाकार बंध आदि भी होते हैं। शेष कर्मों में केवल एक ही बंधस्थान होता है। (ख) बन्धट्ठागा तिदसट्ठ सणावरणमोहनामाणं । सेसाणेगमयट्टियबन्धो सवत्य ठाण समो।।
-पंचसंग्रह २२३ -दर्शनावरण के तीन बन्धस्थान हैं, मोहनीय के दस बन्धस्थान और नामकर्म के आठ बंधस्थान हैं तथा शेष कर्मों का एक-एक ही बन्धस्थान है । जिसने बन्धस्थान होते हैं, उतने ही अवस्थित बन्ध होते हैं ।