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पंचम कर्मग्रन्थ
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इस प्रकार से मोहनीय कर्म के दस बन्धस्थान और नौ भूयस्कार, आठ अल्पतर दस अवस्थित और दो अवक्तव्य बन्ध बतलाने के बाद अब नामकर्म तथा ज्ञानावरण आदि कर्मों के बन्धस्थान व भूयस्कार आदि बन्धों का निरूपण करते हैं ।
तिपणछअनवहिया वोसा तोसेगतीस इग नामे |
अट्टतिबन्धा सेसेसु य
शब्दार्थ –लिपणछअनवहिया तीन पांच छह आठ और नो अधिक, बीसा वीस तीस तीस, एक्तीस इकतीस, इग
एक नामे - नामकर्म छ छह भूमस्कार बंध, स्सग - सात अल्पतर
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बन्ध, अट्ठ-आठ अवस्थित बंध, तिबंधा- तीन अवक्तव्य बन्ध. सेसेसु - बाकी के ज्ञानावरण आदि पांच कर्मों में, ठाण-वन्प्रस्थान इक्विक एक-एक
ठाणमिक्कवकं ॥२॥
गाथार्थनामकर्म में तीन, पांच छह, बाऊ और नौ अधिक बीस तथा तीस, इकतीस, एक प्रकृति रूप बंधस्थान होते हैं तथा इनमें छह भूयस्कार बंध, सात अल्पतर बन्ध, आठ अवस्थित बन्ध और तीन अवक्तव्य बन्ध हैं । दर्शनावरण, मोहनीय और नामकर्म के सिवाय शेष पांच कर्मो में एकएक बन्धस्थान है ।
विशेषार्थ - इस गाथा में नामकर्म के बन्धस्थानों और उनमें भूयस्कार आदि बन्धों की संख्या तथा शेष पांच कर्मों के बन्धस्थानों को बतलाया है ।
नामकर्म के आठ बन्धस्थान है, उनमें से कुछ की संख्या संकेत द्वारा बतलाई है । जैसे कि 'तिपणछअनवहिया वीसा' तीन अधिक बीस, पांच अधिक बीस, छह अधिक बीस, आठ अधिक बीस, नौ अधिक बीस, जिनसे क्रमश: तेईस प्रकृति रूप, पच्चीस प्रकृति रूप, छब्बीस प्रकृति