Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्म ग्रन्थ
है। वही जीव आयुकर्म का बंध काल आने पर जब आठों कर्मों का बंध करता है तब तीसरा भूयस्कार बंध होता है। इस प्रकार एक से छह. छह से सात और सात से आठ कर्मों का बंध होने के कारण चार बंधस्थानों में भूयस्कार बंध तीन होते हैं।
उक्त चार बंधस्थानों में इन तीन भूयस्कार बंधों के सिवाय विकल्प से अन्य तीन भूयस्कर बंधों की कल्पना की जाये सो वे संभव नहीं हैं । विकल्प से अन्य तीन भूयस्कार बन्धों की कल्पना इस प्रकार की जाती है- पहला एक को बांध कर सात कर्मों का बंध करना, दूसरा-एक को बांध कर आठ कमां का बंध करना, तीसरा-छह को बांधकर आठ कर्मों का बंध करना।
इन तीन भूयस्कार बंधों के विकल्पों में से आदि के दो भूयस्कार बंध दो तरह से हो सकते हैं—१. गिरने की अपेक्षा से, २. मरण की अपेक्षा से। किन्तु गिरने की अपेक्षा से आदि के दो भूयस्कार बंध इसलिये नहीं हो सकते हैं कि ग्यारहवं गुणस्थान से पतन क्रमशः होता है, अक्रम से नहीं होता है। अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थान से गिरकर जीव दसवें गुणस्थान में आता है और दसवें से नौवें में आता है आदि। यदि जीव म्यारहवें गुणस्थान से गिरकर सीधा नौर्वे में या सात गुणस्थान में आता है तो एक को बांध कर सात का या आठ कर्मों का बंध कर सकने से पहला, दूसरा भुयस्कार बंध बन सकता था । किन्तु पतनः क्रमशः होता है अतः ये दो भूयस्कार बंध पतन की अपेक्षा तो बन नहीं सकते हैं। इसी प्रकार छह को बांधकर आठ कर्मों का बन्ध रूप तीसरा भूयस्कार बंध भी नहीं बनता है क्योंकि छह कर्मों का बंध दसवें गुणस्थान में होता है और आठ कर्मों का बंध सातवें और उसके नीचे के गुणस्थान में होता है । यदि जीव दसवें गणस्थान से एकदम सात गुणस्थान में आ सकता तो वह छह को बांध कर आठ का बन्ध कर सकता था, किन्तु पतन क्रमशः होता है अर्थात्