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गानक
दसवें गुणस्थान से गिरकर जीव नौवें गुणस्थान में ही आता है, जिससे तीसरा भूयस्कार बन्ध भी नहीं बन सकता है।
उक्त कथन का सारांश यह है कि ऊपर के गुणस्थान से पतन एकदम न होकर क्रमशः ग्यारहवें, दसवें, नौवे आदि में होता है, अतः पतन की अपेक्षा एक को बांधकर सात का बन्ध करना, एक को बांध. कर आठ कर्मों का बन्ध करना, छह को बांधकर आठ कर्मों का बन्ध करना यह तीनों भूयस्कार बंध नहीं बनते हैं।
अब रहा मरण की अपेक्षा आदि के दो भूयस्कार बंधों का हो सकना । सो ग्यारह स्थान में जा करके बीच गति में है जन्म लेता है। और वहां बह सात ही कर्मों का बंध करता है, क्योंकि देवगति में छह मास की आसु शेष रहने पर ही आयु का बन्ध होता है। अतः मरण की अपेक्षा से एक का बन्ध करके आठ का बन्ध कर सकना संभव नहीं है। इसलिये यह भूयस्कार बंध नहीं हो सकता है। किन्तु एक को बांधकर सात का बंध रूप भूयस्कार संभव है, लेकिन उसके बारे में यह ज्ञातव्य है कि जो एक को बांधकर सात कर्मी का बन्ध करता है तो बन्धस्थान सात का ही रहता है, इसलिये उसको जुदा नहीं गिना जाता है। यदि बंधस्थान का भेद होता तो १ बदाऊ पडिवानो सेटिंगओ व पसंतमोहो बा । जह कुणइ कोइ कालं वच्चइ तोऽणुत्तरसुरसु ।।
-विशेषावश्यक भाष्य १३११ यदि कोई बद्धासु जीव उपशम श्रेणि बढ़ता है और श्रेणि के मध्य के किसी गुणस्थान में अथवा ग्यारहवें गुणस्थान में यदि मरण करता है तो
नियम से अनुत्तरवासी देवों में उत्पन्न होता है। २ तेनो उत्तर कहे छ के जो पण एक बंध थ्री सातकर्म बंध करे तो पण
बंधस्थानक सासनु एकज छे ते मणी जुदो न लेयो, बन्धस्थामकनो भेद होय तो जुको भूयस्कार मेखवाय । - पंचम कर्मप्रभ्य का टम्टा