Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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मान्दा...मोदन--- मारकर्मी रोय वा प्रकृतियाँ, चउतण : तनुचतुष्क उपधाय-उपघात, साहारणसाधारण, इमर-इतर.. प्रत्येक, जोय सिगं- उद्योतत्रिक, पुगलविवागि---पुद्गल विपाकी, बंधो-धंध, पयावह - प्रकृति और स्थितिबंध, रसपएस -- रसबंध और प्रदेशमंत्र, सि- इस प्रकार ।
गाधार्थ-नामकर्म की ध्रुवोदयी बारह प्रकृतियां, शरीर चतुष्क, उपघात, साधारण, प्रत्येक, उद्योतविक ये छत्तीस प्रकृतियां पुद्गल विपाकी हैं। प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, रसबंध और प्रदेशबंध ये बंघ के चार भेद हैं। विशेषापं - गाथा में पुद्गल विपाकी प्रकृतियों को बताने के अलावा बंध के चार भेदों को बतलाया है । जिनमें आगे की गाथाओं में भूयस्कार बंध आदि विशेषताओं का वर्णन किया जाने वाला है।
सर्वप्रथम पुद्गलविपाकी प्रकृतियों को गिनाया है कि 'नामधुवोदय "पुग्गल विवागि' नामकर्म की बारह ध्रुवबंधिनी प्रकृतियां (निर्माण, स्थिर, अस्थिर, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, तेजस, कार्मण, वर्णचतुष्क) तथा तनुचतुष्क (तंजस, कार्मण शरीर को छोड़ कर औदारिक आदि तीन शरीर, तीन अंगोपांग, छह संस्थान, छह संहनन), उपघात, साधारण, प्रत्येक, उद्योतनिक (उद्योत, आतप, पराघात) ये प्रकृतियां पुद्गलविपाकी हैं । जिनकी कुल संख्या छत्तीस है।
उक्त प्रकृतियां शरीर रूप में परिणत हुए पुद्गल परमाणुओं में ही अपना फल देती हैं, अतः पुद्गलविपाकी हैं । जैसे कि निर्माण नामकर्म के उदय से शरीर रूप परिणत पुद्गल परमाणुओं में अंग-उपांग का नियमन होता है। स्थिर नामकर्म के उदय से दांत आदि स्थिर तथा अस्थिर नामकर्म के उदय से जीभ आदि अस्थिर होते हैं । शुभ