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पंचम कर्मग्रन्थ
द्वारा उदय होता है । अर्थात् विभिन्न परभवों के योग्य बांधी हुई गतियों का उस ही भव में संक्रमण आदि द्वारा उदय हो सकता है। जैसे कि चरम शरीरी जीव के परभव के योग्य बांधी हुई गतियां उसी भव में क्षय हो जाती हैं । अतः गति नामकर्म भव का नियामक नहीं होने से भवविपाकी नहीं है । तात्पर्य यह है कि स्वभब में ही उदय होने से आयुकर्म भवविपाकी है और गति नामकर्म अपने भव में विपाकोदय द्वारा और परभव में स्तिबुकसंक्रम द्वारा इस प्रकार, स्व और पर दोनों भवों में उदय मंभव होने से भवविपाकी नहीं है। आनुपूर्वो कर्मसम्बन्धो स्पष्टीकरण ___ आनुपूर्वी कर्म क्षेत्रविपाकी है । लेकिन यहां जिज्ञासु प्रश्न उपस्थित करता है कि विग्रहाति के विका को संप्रम के द्वारा जानुपूर्वी का उदय होता है अतः उसे क्षेत्रविपाकी न मानकर गति की तरह जीवविपाकी माना जाना चाहिये । इसका उत्तर यह है कि आनुपूर्थियों का स्वयोग्य क्षेत्र के सिवाय अन्यन्त्र भी संक्रमण द्वारा उदय होने पर भी जैसे उसका क्षेत्र की प्रधानता से बिपाक होता है, वैसा अन्य किसी भी प्रकृति का नहीं होता है । इसलिये आनुपुवियों के रसोदय में आकाश प्रदेश रूप क्षेत्र असाधारण हेतु है । जिससे उसको क्षेत्रविपाकी माना गया है।
प्रकृतियों के क्षेत्रविपाकी आदि भेदों का प्रदर्शक यंत्र इस प्रकार