Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
__बंध एवं उपक प्रजातियों के 35 छ, अब मेघों में गो को घटित करने का सारांश यह है कि मिथ्यात्व को छोड़कर शेष उदय प्रकृतियों में पहले दो-अनादि-अनंत, अनादि-सान्त भंग तथा मिथ्यात्व में तीन-अनादि-अनंत, अनादि-सान्त तथा मादि-सान्त भंग होते है। ध्रुबबन्धिनी प्रकृतियों में अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादिसान्त यह तीन भंग घटित होते हैं। अध्रुव बंध व उदय प्रकृतियों में सिर्फ सादि-सान्तु यह एक भंग होता है। यह भंग भव्य और अभव्य श्रीवों की पारिणामिक स्थिति के कारण बनते हैं। ग्रन्थकार ने सूत्र रुप में प्रकृतियों में घटित होने वाले मंगों का संकेत गाथा ५ में कर ही दिया है कि
पदमबिया धूवजवसु धवजंधिसु तइअवज भंगलिगं । मिच्छम्मि तिग्नि भंगा दहावि अधुवा तुरिस भंगा ।। इस प्रकार से ध्रुव-अधूत्र बंध, उदय प्रकृतियों के नाम और उनमें घटित होने वाले भंगों की संख्या का कारण सहित स्पष्टीकरण करने के पश्चात अब दो गाथाओं में ध्र ब, अध्रुव सत्ता प्रकृतियों को गिनाते हैं। ध्रुव-अनुव सत्ता प्रकृतियां
तमबन्नवीस सगतेय-कम्म घुयबंधि सेस वेतिगं । आमितिम वेणियं बुजुयल सगउरल सासचऊ ।।८।। खगइतिरिम नीयं धुवसंता सम्म मोस मणुयदुगं । विविककार अिणाऊ हारसगुच्चा अधुवसंता ॥६।
शम्नार्थ-तसवामपीस- त्रस आदि बीस व वर्ण आदि बीस प्रकृतियां, सगसेयफम्म तजभ कामंण सप्तक, वधि-ध्र वबंधिनी, सेस-बाकी को, यतिगं–वेदत्रिक, आगिइतिग- आकृतित्रिक-छह