Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कमग्रन्छ
कषामें अनाचार स्थिति की जनक हैं यानी जिनके उदय से सम्यक्त्व आदि गुणों का विनाश होता है, वे सर्वघाती कहलाती हैं और जो कपायें मात्र अतिचार उत्पन्न करती है वे देशघाती कहलाती हैं। मंज्वलन कषाय के रदय से सिर्फ अतिचार लगते हैं और आदि की बारह कषायों के उदय से मूल का नाश होता है अर्थात् व्रती से पतन होना है । लेकिन संज्वलन कषायों के रहने से व्रतों में अतिचार तो अवश्य लग जाते हैं, किन्तु व्रतों का समूलोच्छेद नहीं होने से देशघाती हैं ।
ग्रहण, धारण योग्य जिस वस्तु को जीव दे नहीं सके, प्राप्त नही कर सके अथबा भोगोपभोग नहीं कर सके आदि यह सब दानान्तराय आदि कर्मों का विषय है और ग्रहण, धारण आदि करने योग्य वस्तुयें जगत में विद्यमान सब द्रव्यों के अनन्तवें भाग प्रमाण ही हैं। इसलिये तथारूप सर्वद्रव्यों के एकदेश के दानादि का विघात करने वालो होने से-दानान्तराय आदि देशघाती हैं । ज्ञान के एक देश को आवाणदिन करने वाली होने से जैसे मतिज्ञानावरण आदि देशघाती हैं, वैसे ही सर्व द्रव्यों के कदेश विषयक दानादि का विघात करने वाली होने में दानान्तराब आदि दशघाती हैं।
घाती प्रकृतियों की संख्या, नाम आदि बतलाने के बाद अब अघाती प्रकृतियों का कथन करते हैं। अघाती प्रकृतियाँ ___ बंधयोग्य १२० और उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से क्रमशः ४५
और १७ घातो प्रकृतिमों को कम करने पर शेष ७५ प्रकृतियाँ अघाती हैं । जिनके नामों का संकेत गाथा में इस प्रकार किया है
अघाइ पतं यतणुढाऊ तसवीसा गोयदुग वन्ना-आठ प्रत्येक प्रकृतियां, शरीर आदि आठ पिंड प्रकृतियों के भेद तथा त्रसवीशक
और गोद्विक, वेदनीयविक, वर्णचतुष्क-ये सब अधाती प्रकृतियाँ हैं। ये सभी नाम, गोत्र, वेदनीय और आयुकर्म को उत्तरप्रकृतियां हैं। ये अपने अस्तित्व तक जीब को संसार में टिकाये रखने के सिवाय