Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पातक
पाँच संस्थान, दूसरी विहायोगति और पांच मंहनन,तिर्यचद्विक, अमानावेदनीय, नीच गोत्र, उपधात, एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियन्त्रिक, नरकविक तथा
स्थावर दशक, वर्ण चतुष्क, पैंतालीस घाति प्रकृतियां, कुल मिलाकर ये बवासी पाप प्रकृतियां हैं। वर्ण चतुष्क को पुण्य और पाप प्रकृतियों दोनों में ग्रहण किया है । अतः पुण्य प्रकृतियों में शुभ और पाप प्रकृतियों अशुभ समझना चाहिये ।
विशेषार्थ-इन नोन गाथाओं में पुण्य प्रकृतियों के बयालीस तथा पाप प्रकृतियों के बयासी नाम बतलाये हैं। पुण्य और पाप प्रकृतियों के रूप में किया गया यह वर्गीकरण १२० बंध प्रकृतियों का है । यद्यपि बयालीस और क्यासी का कुल जोड़ १२४ होता है और जबकि बंध प्रकृतियां १२० हैं तो इसका कारण स्पष्ट करते हुए ग्रन्थकार ने कहा है कि 'दोसुवि बन्नाइगहा सुहा असुहा' वर्ण चतुष्क वर्ण, गंध, ग्न, स्पर्श प्रकृतियां शुभ भी हैं और अशुभ रूप भी हैं, अतः ये चार प्रकृतियां शुभ रूप पुण्य और अशुभ रूप पाप प्रकृतियों में ग्रहण की जाती हैं, इसी कारण पुण्य और पाप प्रकृतियों की संख्या क्रमशः ४२ और ८२ बतलाई गई हैं। यदि वर्ण चतुष्क को दोनों वर्गों में न गिरें तब पुण्य और यार प्रकृतियों की संख्या क्रमशः ३८ और ७८ होगी और जब वर्ण चनुष्क प्रकृतियों को किसी .एक वर्ग में मिलाया जायेगा तब ४२ और ७८ अथवा ३८ और ८२ होगी । इस स्थिति में कुल जोड़ १२० होगा जो बंध प्रकृतियों का है। ____बंध प्रकृतियों के घाती और अघाती के भेद से गणना करने के पश्चात पुण्य और 'पाप के रूप में भेद गणना करने का कारण यह है कि जिस प्रकृति का रस- अनुभाग, विपाक आनन्ददायक होता है, उसे पुण्य और जिस प्रकृति का रस दुखदायक होता है वह पाप प्रकृति