Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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इस प्रकार से सत्ता प्रकृतियों के १५८ भेदों में से कितनी और कौन कौन सी प्रकृतियां ध्रुवसत्ता और अध्रुवसत्ता हैं, इसका कथन करने के बाद अब आगे की तीन गाथाओं में कुछ प्रकृतियों की गुणस्थानों की अपेक्षा ध्रुवसत्ता और अध्रुवसत्ता का निरूपण करते हैं।
पढमतिगुणेसु मिच्छं नियमा अजयाइअट्टगे भज्ज । सासाणे खलु सम्म संतं मिच्छाइदसगे वा ॥१०॥ साः गगीशे धर्म र सिमासु भयणाए। आइयुगे अण नियमा भइया मीसाइनवमम्मि ॥११॥ आहारसतगं वा सञ्चगुणे वितिगुणे विणा तित्यं । नोभयसते मिच्छो अंतमुहत्तं भवे तित्थे ॥१२॥
शब्दार्थ- पढमतिगुणेसु- पहले तीन गुणस्थानों में, मिच्छेमिथ्यात्व, नियमा–निश्चित रूप से. अजयाइ.-अविरति आदि, अठगे---आठ गुणस्थानों में, भों-भजना से (विकल्प से, सासाणे-सासादन गुणस्थान में, स्व-निश्चय से, सम्मं सम्यक्त्व मोदनीय, संतं . विद्यमान होती है, मिच्छाइवसगे-मिथ्यात्व आदि दस गुणस्थानों में, वा–विकल्प से ।
सासणमोसेसु–मासादन और मिश्र गुणस्थान में, धुवंनित्य, मीसं-~-मित्र मोहनीय, मिच्छाइनवसु-मिथ्यात्व आदि नो गणरथानों में, भयणाए--विकल्प से, आइदुगे-आदि के दो गुणस्थानों में, अग-अनंनानुबंधी. नियमा–निश्चय से, मया-चिवल्प से, मीसाइनवगम्मि -मिश्रादि नौ गुणस्थानों में ।
आहारसतगं—आहारक मतक, सम्वगुणे--सभी गुणस्थानों में, वा--विकल्प में, वितिगुणे- दूसरे तीसरे गुणस्थान में, विणा - बिना, तिस्थं - तीर्थकर नामकर्म, न-नहीं होता है, उमयसते