Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मप्रन्य
विषयभूत) अनन्त गणों को जानने में जो जसकी। असमर्थता है, उसे केवलज़ानावरण का उदय समझना चाहिये। __ चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण भी केवलदर्शनावरण से अनावृत केवलदर्शन के एकदेश को धातते हैं। इनके उदय में जीत्र चक्षुदर्शन आदि के विषयभूत विषयों को पूरी तरह नहीं देख सकता है, किन्तु उनके अविषयभूत अनंतगुणों को केवलदर्शनावरण के उदय होने के कारण ही देखने में असमर्थ होता है।
संज्वलन कषाय चतुपक और हास्यादि नी नो कषायें चारित्र गुण का सर्वात्मना घात करने में तो सक्षम नहीं हैं किन्तु मूल गुणों और उत्तर गुणों में अतिचार लगाती है । इसीलिये इनको देशधातिनी माना है । जबकि अन्य कषायों का उदय अनाचार का जनक है।'
अन्तराय कर्म की दानान्तराय आदि पांचों प्रकृतियां देशघातिनी इसलिये मानी जाती हैं कि दान, लाभ, भोग और उपभोग के योग्य जो पुद्गल हैं वे समस्त पुद्गल द्रव्य के अनंतवें भाग हैं। यानी सभी पुद्गल द्रव्य इस योग्य नहीं हैं कि उनका लेन-देन आदि किया जा सके, लेन-देन और भोगने में आने योग्य पुद्गल बहुत थोड़े हैं। साथ ही यह भी जानना चाहिये कि भोग्य पुद्गलों में भी एक जीव सभी पुद्गलों का दान, लाभ, भोग, उपभोग नहीं कर सकता है। सभी जीव अपने अपने योग्य पुदगल अंश का ग्रहण करते रहते हैं। अतः दानान्तराय, लाभान्त राय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय देशघाती हैं । वीर्यान्त राय
सन्वेयि य अइयारा मजलणाणं तु जदयो होति । मूलन्छेज्ज पृण होइ बारमाहं कसायाणं ।
-पंगसक ४४ संज्वलन कषाय के उदय से समम्त अतिचार होते हैं, किन्तु शेष बारह कषाय के उदय से बत के मूल का ही छेदन हो जाता है ।