Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रकृति को सत्ता अवश्य होती है। साथ ही यह भी कहा है कि 'सासाणे खलु सम्मं संतं' सासादन गुणस्थान में सम्यक्त्व मोहनीय
कृति निश्चित रूप से । भानो सिमात्य मोहाली और सम्यक्त्व मोहनीय के निश्चित अस्तित्व का कथन किया गया है । ___ इस प्रकार से मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यक्त्व मोहनीय की गुणस्थानों में निश्चित सत्ता बतलाने के साथ-साथ इन दोनों प्रकृतियों की विकल्पसत्ता वाले गुणस्थानों का संकेत क्रमशः 'अजयाइअट्ठगे भज्ज' व 'मिच्छाइदसगे या' पदों से किया है कि मिथ्यात्व प्रकृति की सत्ता चौथे अविरति सम्यग्दृष्टि आदि आठ गुणस्थानों में भजनीय है तथा सम्यक्त्व प्रकृति सासादन के सिवाय पहले मिथ्यात्व आदि दस गुणस्थानों में विकल्प से होती है । इसके कारण को स्पष्ट करते है।
पहले, दूसरे और तीसरे गुणस्थान में मिथ्यात्व प्रकृति की सत्ता इसलिये मानी जाती है कि मिथ्यात्व गुणस्थान में तो मिथ्यात्व की सत्ता रहती ही है । उपशम सम्यक्त्व के काल में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक छह आवलिका काल शेष रहने पर कोई कोई जीव सासादन गुणस्थान को प्राप्त करते हैं, उस समय उन जीवों के मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति की सत्ता अवश्य रहती है। इसीलिये दूसरे गुणस्थान में मिथ्यात्व की सत्ता बतलाने के साथ सम्यक्त्व की भी सत्ता बतलाई है।
उवसमसम्मत्ताओ चयओ मिच्छं अपावमाणस्स । सासायणसम्मत्तं तयंतरालम्मि छावलिय ।।
-विशे० भाय ५३४ उपशम सम्यक्त्व के काल में अधिक से अधिक ६ आवलिका शेष रहने पर अनंतानुबंधी कषाय के उदय से उपधाम सभ्यक्त्व से च्युत होकर जब तक जीव मिथ्यात्व में नहीं आता तब तक बह उस समयावधि के लिये सासादन' सम्यग्दृष्टि हो जाता है।