Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पंचम
दोनों की सत्ता, मिठो-मिथ्यात्वी, अंतमुतं - अन्तर्मुहू पर्यन्त भवे― होती है, तिथे तीर्थंकर नामकर्म के होने पर भी ।
-
गाथा - पहले तीन गुणस्थानों में मिध्यात्व मोहनीय की सत्ता अवश्य होती है और अविरति आदि आठ गुणस्थानों में भजनीय है, सासादन गुणस्थान में सम्यक्त्व मोहनीय की सत्ता निश्चित रूप से होती है। और मिथ्यात्व आदि दस गुणस्थानों में विकल्प से होती है ।
सासादन और मिश्र गुणस्थान में मिश्र प्रकृति की सत्ता निश्चित रूप से रहती है। मिध्यात्व आदि नौ गुणस्थानों में बिकल्प से है । पहले दो गुणस्थानों में अनन्तानुबंधी कषाय की सत्ता अवश्य होती है और मिश्र आदि नौ गुणस्थानों में भजनीय है ।
आहारक सप्तक सभी गुणस्थानों में विकल्प से है । दूसरे और तीसरे गुणस्थान के सिवाय शेष गुणस्थानों में तीर्थंकर नामकर्म विकल्प से होता है और दोनों (आहारक सप्तक व तीर्थंकर नामकर्म) की सत्ता वाला मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में नहीं आता है। यदि तीर्थंकर नामकर्म की सत्तावाला कोई जीव मिथ्यात्व में आता है तो सिर्फ अन्तमुहूर्त तक के लिये आता है ।
Y
विशेषार्थ — इन तीन गाथाओं द्वारा गुणस्थानों में कुछ प्रकृतियों की सत्ता विषयक स्थिति का स्पष्टीकरण किया गया है कि कौन-सी प्रकृति किस गुणस्थान तक निश्चित व विकल्प होती है । मिथ्यात्व व सम्यक्त्व प्रकृति की सत्ता का नियम
. मिथ्यात्व प्रकृति की सत्ता के बारे में बतलाया है कि 'पठमतिगुणेसु मिच्छं नियमा' पहले तीन गुणस्थानों में मिध्यात्व मोहनीय