Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
४६ मिश्र गुणस्थान में आने वाले जीव के सम्यक्त्व की सत्ता नहीं रहती है, शेष जीबों के रहती है। ___चौथे गुणस्थान से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान तक क्षायिक सम्यमहष्टि के सम्यक्त्व मोहनीय प्रकृति को सत्ता नहीं होती है किन्तु क्षायोपशमिक और औपशमिक सम्यग्दष्टि को उसकी सत्ता अवश्य रहती है। ___इस प्रकार मोहनीय कर्म की प्रकृति मिथ्यात्व और सम्यक्त्व की सत्ता का विचार आदि के ग्यारह गुणस्थानों में किया गया । अन्त के तीन गुणस्थानों में मोहनीय कर्म का क्षय हो जाता है अतः इनकी सत्ता नहीं रहती है । अब आगे मिथ मोहनीय और अनन्तानुबंधी कषाय की सत्ता का विचार करते हैं । मिश्र मोहनीय और अनन्तानुबंधो की सत्ता का नियम
मिश्र मोहनीय की निश्चित रूप से किस गुणस्थान में सत्ता होती है, इसके लिये कहा है-'सासणमोसेसु धुर्व मीसं-सासादन और मिश्र गुणस्थान में मिध (सम्यमिथ्यात्व) मोहनीय की सत्ता नियम से होती है । इसका कारण यह है कि 'प्रथमोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय जो मिथ्यात्व के तीन पुंज हो जाते हैं और उस सम्यक्त्व के काल में जब कम से कम एक समय और अधिक से अधिक छह आवलिका काल शेष रह जाता है तब सासादन गुणस्थान की प्राप्ति होती है। उस समय उस जीव के परिणाम निश्चित रूप से न तो सम्यक्त्व रूप होते हैं और न मिथ्यात्व रूप किंतु सम्यक्त्वांश भी होता है और मिथ्यात्वांश भी। इसीलिये मिश्र प्रकृति की सत्ता रहती है । इसीलिये दूसरे गुणस्थान में मिश्र प्रकृति की सत्ता मानने का विधान किया है।
तीसरा मिश्र गुणस्थान मिश्र मोहनीय के उदय के बिना होता नहीं है। इसीलिये तीसरे गुणस्थान में मिश्न प्रकृति की ध्रुवसत्ता कहीं