Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
३६
作
अन्थ में स्पष्ट किये गये है और संख्या इस प्रकार है— ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण, वेदनीय २, मोहनीय २८, आयु ४, नामकर्म १०३, गोव २, अंतराय ५ । कुल मिलाकर (५+२+२८ + ४ + १०३ : २ + ५) १५८ भेद हो जाते हैं ।
इन १५८ प्रकृतियों का ध्रुव और अध्रुब सत्ता रूप में कथन करने के लिये निम्नलिखित संज्ञाओं का उपयोग किया गया है। संज्ञानों और उनमें गर्भित प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
सबक - लस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय यशः कीर्ति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय, अयशःकीर्ति । "
वर्णधोशक- पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध, आठ स्पर्श |
संजस कार्मण सप्तक- तेजस शरीर, कार्मण शरीर, तैजसतैजस बंधन, तैजसकार्मण बंधन, कार्मण-कार्मण बन्धन, तेजस संघातन, कार्मण संघातन ।
आकृतित्रिक - छह संस्थान - समचतुरस्त्र न्यग्रोधपरिमंडल, सादि बुब्ज, वामन, हैंड | छह संहनन - वज्रऋषभनाराच ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच कीलिका, सेवार्त । पांच जाति - ( जाति नामकर्म के भेद ) एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ।
युगल ट्रिक - हास्य और रति का युगल तथा शोक व अरति का युगल ।
औदारिकसप्तक-- औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, औदा
: स से लेकर यशः कीर्ति तक की प्रकृतियां सदशक और स्थावर से अश: कीर्ति तक की प्रकृतियां स्थापदेशक कहलाती हैं । चतुष्क में गमित नामों को प्रथम कर्मग्रन्थ में देखिये ।
२. वर्ण
,