Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
16
पंचम कर्मग्रन्थ
रिक संघात, औदारिक बंधन, ओदारिक- तेजस बंधन, औदारिककार्मण बंधन, औदारिक- तेजस - कार्मण बंधन ।
उच्छ्वास चतुष्क— उच्छ्वास, आतप, उद्योत, पराधात । खगतिद्विक- शुभ विहायोगति, अशुभ विहायोगति । तिचह्निक-तिर्यंचगति तिर्यचानुपूर्वी । मनुष्यश्चिक– मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी ।
वैक्रियएकादश – देवगति, देवानुपूर्वी, नरकगति, नरकानुपूर्वी, क्रिय शरीर, क्रिय अंगोपांग, वैक्रिय संघात, वैक्रियवैक्रिय बंधन, वैक्रियतेजस बंधन, वैक्रियकार्मण बंधन, वैक्रिय तेजस - कार्मण बंधन ।
आहार कसप्तक---आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, आहारकसंघातन, आहारक आहारक बंधन, आहारक- तेजस बंधन, आहारककार्मण बंधन, आहारक - तंजस - कार्मण बंधन |
इन संज्ञाओं में गृहीत प्रकृतियों तथा कुछ प्रकृतियों के नाम निर्देश पूर्वक ध्रुव अध्रुव सत्ता वाली प्रकृतियों की अलग अलग संख्या वतलाई है । तस्वलवीस से लेकर नीयं ध्रुवसंता पद तक भुन सत्ता वाली प्रकृतियों के नाम हैं तथा सम्ममीस मणुयदुगं से लेकर हारसगुच्चा पद तक अध्रुवसत्ता वाली प्रकृतियों के नाम हैं । कुल मिलाकर ये १५८ प्रकृतियां हो जाती हैं ।
बंध और उदय में ध्रुवबंधिनी और ध्रुवोदया प्रकृतियों की संख्या अनुबंधिनी और अनुवोदया की अपेक्षा कम है, लेकिन इसके विपरीत सत्ता में ध्रुवसत्ता प्रकृतियों की संख्या अधिक और अध्रुवसना प्रकृतियों की संख्या कम है। इसका स्पष्टीकरण यह है कि बंध के समय ही किसी प्रकृति का उदय हो जाये और किसी प्रकृति के उदय के समय ही उस प्रकृति का बंध भी हो जाये यह आवश्यक नहीं