Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पंचम फर्मग्रन्थ
और भव्य जीवों को अपेक्षा अनादि-सान्त । शेष दो भंग-सादि-अनंन और सादि-सान्त घटित नहीं होते हैं। क्योंकि किसो प्रकृति के उदय का बिच्छेद होने के पश्चात पुनः उदय होने लगता हो तो वह उदय सादि कहलाता है । लेकिन उक्त ध्रुवोदयी प्रकृतियों का उदयविच्छेद बारहवें, तेरहवें गुणस्थान के अंत में हो जाने पर पुनः उनका उदय नहीं होता है और उन गुणस्थानों के प्राप्त हो जाने के बाद जीव नीचे के गुणस्थानों में नहीं आकर मुक्ति को ही प्राप्त करता है। अतः उक्त प्रकृतियों का सादि उदय नहीं होता है । इसलिए शेष दो भंग भी नहीं होते हैं।
छब्बीस ध्रुवोदयी प्रकृतियों में आदि के दो भंग होते हैं, लेकिन मिथ्यात्व में अनादि-अनन्त, अनादि सान्त और सादि-सान्त यह तीन भंग होते हैं । अनादि-अनंत भंग अभव्य जीवों की अपेक्षा से, अनादिसान्त भंग अनादि मिथ्याइष्टि भव्य जीवों की अपेक्षा से घटित होता है । अनादि अनंत भंग अभव्य जीवों की अपेक्षा से मानने का कारण यह है कि उनके मिथ्यात्व के उदय का अभाव न तो कभी हुआ है और न होगा । भव्य जीवों की अपेक्षा अनादि-सांत भंग इसलिए माना जाता है कि पहले पहल सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाने पर उनके अनादिकालीन मिथ्यात्व का अभाव हो जाता है । चौथा सादि-सान्त भंग भी उस भव्य जीव की अपेक्षा घटित होता है जो सम्यक्त्व के छुट जाने के पश्चात पुनः मिथ्यात्व को प्राप्त करके भी पुनः सम्यक्त्व को पाकर उसका अभाव कर देता है । इस प्रकार ध्रुवोदया मिथ्यात्व प्रकृति में तीन भंग घटित होते हैं।
अध्रुवबन्धिनी और अध्रुवोदयी प्रकृतियों में केवल सादि-सान्त भंग ही घटित होता है । क्योंकि उनका बंध और उदय अध्रुव है, कभी होता है और कभी नहीं होता है । इस प्रकार बंध और उदय प्रकृतियों में भंगों का क्रम समझना चाहिए ।