Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
गायार्प-निर्माण, स्थिर, अस्थिर, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, तंजस कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, पांच ज्ञानावरण, पांच अंतराय, चार दर्शनावरण और मिथ्यात्व मोहनीय, ये ध्रुवोदयी सत्ताईस प्रकृतियां हैं।' विशेषार्थ- इस गाथा में ध्रुबोदयी मत्ताईस प्रकृतियों के नाम बतलाते हैं । इनको ध्रुवोदयी कहने का कारण यह है कि अपने उदयविच्छेद काल तक इनका उदय बना रहता है।
शानावरण आदि आठ कर्मों की उदययोग्य १२२ प्रकृतियां हैं - झानावरण ५, दर्शनावरण, वेदनीय २, मोहनीय २८, आयु ४, नाम ६७, गोत्र २, अन्तराय ५ । इस प्रकार मे ५++२+२+४+६+२ +५=१२२ प्रकृतियां होती हैं । इनमें से २७ प्रकृतियां ध्रुवोदयी हैं। जिनका विवरण क्रमशः इस प्रकार है ----
(१) सामावरण-मति, श्रुत, अवधि, मनपर्याय, केवल शानावरण ।
(२) वनावरण-चक्ष, अचक्षु, अवधि, केवल दर्शनाबरण । (३) मोहनीय-मिथ्यात्व |
१ (क) निम्माणधिरापिरतेयकम्मरणार अगुरुमहममुहं । नाणंतरायदसगं सणचन मिच्छ निच्चदया ।
-पंखसंग्रह ३।१६ (ख) गो० कर्मकांड में स्त्रोदयश्बन्धिनी प्रकृतियों को गिनने के संदर्भ में प्र वोदयी प्रकुतियों का निर्देम म प्रकार किया है
.... मिसळ सहमस्स घादीयो ।। नेजगं वणचॐ थिन्मृगजुगलगुरुणिमिण धुवउदया ।।
- गो० कर्मकांड गा० ४०२, ४०३