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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नेमिचन्द्रिका का उल्लेख उत्तमचंद कोठारी की सूची में भी है पर उसमें भी विवरण उद्धरण नहीं है।'
इन्द्रसौभाग्य -- तपागच्छीय राजसागरसूरि> वृद्धसागर> लक्ष्मीसागर >कल्याणसागर>सत्यसौभाग्य के आप शिष्य थे। आपकी 'जीवविचार प्रकरण' और 'धूर्ताख्यान प्रबन्ध' (सं० १७१२) नामक दो रचनायें उपलब्ध हैं। आपने राजसागरसूरि के अंतिम समय में ही संस्कृत में 'महावीर विज्ञप्ति षट्त्रिंशिका' की रचना की थी। धूख्यिान गद्य में रचित है या पद्य में, इसका पता नहीं चल सका है। जीवविचारप्रकरण के प्रारंभ की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
वीर जिणेसर पय नमी, कहिस्युं जीव विचार।
सिद्ध अनइ संसार नां, अ बिहु जीव प्रकार। इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नलिखित हैंतपगच्छमंडन वाचक नायक सत्यसौभाग्य गुरुराय रे, तास शिष्य इणिपरि रे बोलै, इन्द्रसौभाग्य उबझाय रे । बालक ने भगवान कारणे, विरच्यो जीवविचार रे। भणे गणे जे भवियण भवि, ते आमे भवपार रे ।
आपके सं० १७४७ तक विद्यमान रहने का पता लगता है। इनकी शिष्य परंपरा में वीर सौभाग्य>प्रेम सौभाग्य और शांतसौभाग्य आदि हए। शांतसौभाग्य ने सं० १७८७ में पाटण में अंगडदत्त ऋषि चौपइ लिखी थी जिसकी चर्चा यथास्थान की जायेगी।
उत्तमचंद ---आप तपागच्छीय विजयदेव सूरि के प्रशिष्य एवं विद्यानंद के शिष्य थे। आपकी एक रचना 'उपधान विधि स्तवन' सं० १७११ श्रावण शुक्ल १० गुरुवार को बीजापुर में पूर्ण हुई । इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं ---
सरसति सारदा रे, सीस नमी गुरुपाय रे।। उपधान विधि भावे भणु रे, सांभलता सुखथाय रे ।
श्री अरिहंत की सीखड़ी रे । १. सूची का प्राप्ति स्थान ---पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी २. श्री देसाई -जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १४५ और भाग ३
पृ० ११९४ (प्रथम संस्करण)
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