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गंगविजयं
१२३ इसमें रानी कुसुमश्री के शील (चरित्र) का वर्णन किया गया है
सीयल तणो महिमा घणों करतां नावे पार,
कुसुम श्री राणी तणो कहिस्युं चरित्र उदार । कथा के अन्त में राजा वीरसेन और रानी कुसुमश्री ने राजपाट त्यागकर संयम धारण किया; इस प्रकार जैन प्रबन्धों का परिपाटी विहित अन्त इसका भी हो गया और कवि ने कहा
राज महोत्सव करी दम्पती, आण्या गुरु ने पासे जी
परहरी राज्य मणिमाणक्य बहु, संयम लइ उल्लासे जी । रचनाकाल--संवत संयम नग सागर वर्षे, कार्तिक मास सूद पक्षे जी,
तेरस नै दिवसे सुभयोगै, वार थावर सुप्रत्यक्षे जी। रास की अन्तिम कड़ी इस प्रकार है-- श्री विजयदेव सूरीसर सेवक, श्री लावण्यविजय उवझाया जी, श्री नित्यबिजय कविराज पसाई, गंगविजय गुणगाया जी।' यह रास 'आनंदकाव्य महोदधि' मौक्तिक भाग १ में प्रकाशित है।
घासी--आपके पिता का नाम बहाल सिंह था । इन्होंने अपने मित्र भारामल के आग्रह पर सं० १७८९ में अपनी रचनाओं का संग्रह 'मित्रविलास' के नाम से तैयार कर उन्हें भेंट किया था । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ हैमित्रविलास महासुख दैन, बरनुं वस्तु स्वभाविक ऐन, प्रगट देखिए लोक मझार संग प्रसाद अनेक प्रकार। शुभ अशुभ मन की प्रापति होय, संग कुसंग तणो फल सोय । पुद्गल वस्तु की निरणय ठीक, हमकू करनी है तहकीक ।
इसमें फारसी शब्द 'तहकीक' तहकीकात का कविगढंत रूप है। इसके रचनाकाल से संबंधित पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं---
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग ५ पृ० २८४-२८७
(न० सं०)।
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