Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 559
________________ गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हर्षविजय - आप तपागच्छ के प्रभावक आचार्य विजयदेव सूरि के प्रशिष्य एवं साधुविजय के शिष्य थे । आपने सं० १७२९ में 'पाटण चैत्य परिपाटी स्तवन' नामक ९ ढाल की रचना पाटण में की। इसका प्रारम्भ इस प्रकार है ५४२ समय सरसती सामिनि, ओ प्रणमीं गुरुपाय; पाटण चैत्य प्रवाडी स्तवन करतां सुख थाय । रचनाकाल संवत सतर ओगणत्रीसे पाटण कीध चोमास हो, जिन जी, वाचक सौभाग्यविजय गुरु, संघनी पोहती आस हो । इसमें विजयदेव, विजयप्रभ और साधुविजय की गुरुओं के रूप में वंदना की गई है । इसकी अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं- कलश इम तीर्थमाला गुण विशाला पवर पाटणपुर तणी, में भगति आणी लाभ जाणी थुणी यात्राफल भणी । तपगच्छनायक सौख्यदायक श्री विजयदेव सूरीसरो, साधुविजय पंडित सेवक, हर्ष विजय मंगलकरो ।" हर्ष -- पता नहीं ये हर्षकीर्ति, हरषचन्द या हर्षचन्द में से ही कोई हर्ष हैं या भिन्न ? इनकी रचना 'चन्द्रहंस कथा का नामोल्लेख डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल ने किया है परन्तु कोई अन्य बिवरण नहीं दिया है । हरिकिसन -- आपने 'भद्रबाहु चरित' की रचना सं० १७८७ की । अन्य विवरण अप्राप्त है । हरिराम -- आपने छंद शास्त्र पर एक रचना 'छंद रत्नावली' नाम से सं० १७०८ में लिखी । इसकी पद संख्या २११ है । इसके प्रति का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है १. वही भाग ३ ५० १२७१-७२ (प्र०सं० ) । २. कस्तूरचन्द कासलीवाल -- राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रंथसूची, भाग ४ । ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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