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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सा सामिनी सुपसाउले, सिद्धांतसार अ ग्रन्थ,
रसिक लोक वल्लभ रचिओ, कहे हस्तरुचि निग्रन्थ । रचनाकाल--
संवत सतर सतरोत्तरि, विजयदसमी शुभ दिन्न,
अहमदाबाद अल्हाद सुं श्री संघ सहु सुप्रसन्न । अन्त--- तपगच्छि दीप कुमति जीपे उवझाय हितरुचि हितकारो,
तस सीस हस्तरुचि अम पभणे, सकल मंगल जयकरो।' आपकी एक रचना 'झांझरिया मुनि संञ्झाय' भी है. किन्तु इसका विवरण-उद्धरण नहीं मिला । श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने अपनी पुस्तक जैन गुर्जर कवियों में आपकी तीसरी रचना उत्तराध्ययन स्वाध्याय का भी उल्लेख किया था किन्तु नवीन संस्करण में उसे उदयविजय की रचना बताया गया है।
हिम्मत -गुरुपरंपरा अज्ञात, रचना - अक्षर बत्रीसी आत्महित शिक्षा रूप ३५ कड़ी सं० १७५० उदेपुर) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -
कक्का ते किरिया करो, कर्म करो चकचूर,
किरिया विण रे जीवड़ा, शिवनगर छे दूर । अन्त-- संवत सत्तर पच्चास मां, समकित कियो वखाण,
उदयापुरे उद्यम कियो, ते मुनि हिम्मत जाण ।' पंक्तियों से स्पष्ट है कि हिम्मत श्रावक या गृहस्थ नहीं बल्कि मुनि थे, लेकिन इनका अन्य विवरण अज्ञात है।
__ होराणंद (होरानन्द) -पल्लीवाल चन्द्रगच्छीय अजितदेव सूरि के शिष्य थे। इन्होंने चौबीसी चौपाई की रचना सं० १७७० से पूर्व किया था। १ मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० १८४-१८६,
भाग ३, पृ० १२-१३ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० २८२ (न०सं०)। २. वही भाग २, पृ० ४१९-४२० (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ११६-११७
(न०सं०)। ___३. वही भाग ३, पृ० १४२२ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० २७८ (न०सं०)
और अगर चन्द नाहटा---परम्परा, पृ० ११३ ।
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