________________
उपसंसार
५५६
लोकभाषा का गद्यसाहित्य अधिक संख्या में रचा गया है। लक्ष्मीवल्लभ ने भर्तृहरि शतक और पृथ्वीराज बेलि पर टब्बा लिखा। तात्पर्य यह कि केवल जैन आयाम और सिद्धांत ग्रंथोंपर ही बालावबोध और टब्बा नहीं लिखे गये बल्कि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश की मिल गयी रचनाओं को भी जैन जनता के समक्ष सरल विधि से गद्य में प्रस्तुत करने का कार्य किया गया। जिनवर्द्धन ने चाणक्यनीति पर टब्बा लिखा। देवचंदजी ने आगमसार नामक गद्यग्रंथ मरोठ की एक श्राविका के लिए आगमों का सारांश समझाने के लिए लिखा। विचारसार टब्बा और विचार रत्नसार प्रश्नोत्तर नामक ग्रंथ भी इसी प्रकार की रचनायें हैं।
शांतरस और सप्तस्मरण बालावबोध भी इनकी उल्लेखनीय रचनायें हैं। महोपाध्याय रामविजय ने जिनसूख सूरि मझलस नामक तुकांत गद्यरचना हिन्दी की चुलबुली शैली में की जो उन्हें अच्छा शैलीकार सिद्ध करती है। यह गद्यशैली भारतेन्दुकालीन प्रसिद्ध विद्वान् और भारतेन्दु मंडल के श्रेष्ठ लेख का चौपई बदरीनारायण 'प्रेमधन' की याद दिलाती है । इन्होंने भी भर्तृहरित्रय शतक बालावबोध मनरूप के आग्रहपर लिखा है । जयचंद ने माताजी की वचलिका लिखी जो राजस्थानी गद्य की विशेष लोकप्रिय विधा रही है। यह वनिका प्रकाशित है। यह सब होते हुए भी अधिक रचनायें जैन धर्म-दर्शन ग्रंथों पर ही आधारित हैं जैसे सुखसागर कृत पाक्षिक सूत्र बालावबोध, योगसार भाषा बालावबोध और गणस्थान विचार बालावबोध, सोमविमल कृत कल्पसूत्र बालावबोध, मेघराज कृत समवायांग सूत्र बालावबोध, स्थानांग सूत्र बालावबोध, हंसराज कृत द्रव्यसंग्रह बालावबोध, नंदीसूत्र बालावबोध, भोजसागर कृत आचार प्रदीप बालावबोध आदि इसी प्रकार की रचनायें हैं। तीर्थंकरों के जीवनचरित्र पर आधारित रचनाओं के बालावबोध भी प्रचर मात्रा में पाये जाते हैं जैसे लक्ष्मीविजय कृत शांतिनाथ पंच बालावबोध या भानुविजय कृत पार्श्वनाथ चरित्र बालावबोध इत्यादि ।
इस शती की अधिकांश गद्यरचनाओं का उल्लेख यथास्थान कर दिया गया है। मरुगुर्जर हिन्दी का गद्यसाहित्य प्राचीन और प्रचुर है। यह कई प्रादेशिक भाषाओं और हिन्दी के विकास के अध्ययन की दृष्टि से ऐतिहासिक महत्व का है। इनसे तत्कालीन गुजराती, For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International