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गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
राजस्थानी और हिन्दी गद्य की भाषा के विकास का इतिहास समझने में बड़ी सहायता मिल सकती है । इन लोगों ने प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश जैसी प्राचीन भाषाओं के अलावा आधुनिक प्रादेशिक भाषाओं की श्रेष्ठ रचनाओं का गद्यानुवाद और उनपर टब्बा, वार्तिक, वचनिका, बालावबोध इत्यादि लिखकर इन मात्रन कृतियों को सर्वसुलभ बनाने का स्तुत्य कार्य किया है । इस विषय में अधिक जानकारी के लिए डॉ० अचलशर्मा का शोधप्रबंध 'राजस्थानी गद्य का उद्भव और विकास' भी देखा जा सकता है ।
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