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ऊपसंहार
५५७ तीर्थमाला और जिनसुख कृत जैसलमेर चैत्य परिपाटी इत्यादि । इसके अतिरिक्त अन्यान्य विषयों जैसे ज्योतिष, वैद्यक, सामुद्रिक, गणित आदि पर भी पद्य-गद्यमय रचनायें प्रचुर परिमाण में की गई । इनका विवरण देकर ग्रंथ का कलेवर बढ़ाना उचित नहीं लगता। केवल संकेत के लिए कुछ विशिष्ट रचनाओं का नामोल्लेख कर दिया जा रहा है।
भक्तिभाव तो इस युग का प्रधान स्वर था, इसमें आनंदघन यशोविजय जैसे विश्रुत साधकों के अलावा विनीत विमल, उदयरत्न और अन्य साधुसंतों की रचनाओं जैसे आदिनाथ सलोको, नेमिनाथ सलोको, भरतबाहुबलि सलोको आदि का उदाहरण प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत किया जा सकता है। नेमिराजूल और स्थलभद्र कोशा की प्रेमकथा के माध्यम से अनेक कवियों ने शृंगाररसपूर्ण रचनायें भी की हैं जिसमें विप्रलंभ पक्ष की प्रधानता है। संयोग शृंगार का वर्णन विरल है, अश्लीलता तो छू भी नहीं गई है इसलिए यह साहित्य हिन्दी साहित्य का समकालीन होते हए भी उसके शृंगारी विषयवस्तु से कत्तई प्रभावित नहीं हैं, इसके अभिव्यंजना पक्ष विशेषतया छंद प्रयोग, काव्यविद्या आदि पर रीति का प्रभाव अवश्य दिखाई पड़ता है। सरस रचनाओं की दृष्टि से नेमराजुल बारहमासा और स्थूलभद्र नवरसों जैसी अनेक रचनायें कई कवियों ने की हैं। ___ लोकसाहित्य के अन्तर्गत कुछ विषय अतिशय लोकप्रिय दिखाई पड़ते हैं जैसे चंदनमलयागिरि कथानक पर जिनहर्ष, सुमति हंस, अजीतचंद, यशोवर्द्धन, चतुर और केसर आदि लेखकों ने अच्छी रचनायें की हैं। इसी प्रकार विक्रमचरित्र पर मानविजय, अभयसोम, लाभवर्द्धन आदि ने चौपाइयाँ, रास, चरित्र आदि प्रचुर संख्या में रचे हैं उदाहरणार्थ परमसागर कृत विक्रमादित्य रास, मानसागर कृत विक्रमादित्य सुत विक्रमसेन रास, लक्ष्मीवल्लभ कृत विक्रमादित्य पंचदण्ड रास आदि को प्रस्तुत किया जा सकता है। इन उदाहरणों से चंदनवाला, विक्रमादित्य, धन्नासेठ आदि से संबंधित लोककथाओं की लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रकार नाना विषयों पर नाना साहित्यरूपों में प्रचर काव्य रचना इस शताब्दी में अनेक विद्वान् श्रावकों और साधक साधुओं संतों द्वारा की गई जिनकी चर्चा विस्तारपूर्वक ग्रंथ में की जा चुकी है। प्रायः जिनके पद्य की चर्चा हुई उसी के साथ उनके गद्य रचनाओं का भी उल्लेख किया
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