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उपसंहार
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लेखकों की रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति की अच्छी झलक मिलती है । विनयविजय के गेय काव्य ग्रंथ शांतसुधारस में औरंगजेब के समय की स्थिति का अच्छा संकेत मिलता है । कवि ने लिखा है जज्ञे भूमावति विषमताऽन्योन्य साम्राज्यदौस्थ्यात् कश्चिन्मा नो नपति यतिनामीशिवु वोत्तवार्त्ताम | अर्थात् साम्राज्य की स्थिति खराब हैं । सर्वत्र अराजकता व्याप्त है । इसलिए कोई यति आचार्य की कुशलवार्ता पहुँचाने वाला नहीं है । उस समय औरंगजेब की दुर्नीति से क्षुब्ध होकर सिक्खों, राजपूतों, रुहेलों, मराठों, सतनामियों आदि ने बगावत शुरू कर दिया था । देश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की यात्रा दुष्कर और भयावह थी । ऐसी स्थिति में वणिक व्यापारी और विरहमान साधु संतों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था । उक्त श्लोक में इस स्थिति की तरफ ही संकेत किया गया है । लक्ष्मीरत्न कृत खेमाहढ़ालिया नो तेजपाल रास, जिन्हर्ष कृत कुमारपाल रास और अभयसोम कृत वस्तुपालरास आदि में पर्याप्त ऐतिहासिक प्रामाणिक सूचनायें उपलब्ध हैं । बहुत सी रचनायें जैनधर्म के इतिहास की दृष्टि से पर्याप्त महत्वपूर्ण है जैसे मेघविजय कृत विजयदेव निर्वाण रास, जिनविजय कृत कर्पूर विजय रास, जिनेन्द्रसागर कृत विजयक्षमा सूरि सलोकों, भावप्रभ सूरि कृत महिमाप्रभ रास, वल्लभकुशल कृत हेमचन्द्र गणि रास, पुण्यरत्न कृत न्यायसागर निर्वाण रास इत्यादि इसी प्रकार अन्य प्रभावक आचार्यों के निर्वाणरासों से तत्कालीन जैनधर्म एवं समाजकी स्थिति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है ।
इस काल में चरित्र और रास पर्याप्त मात्रा में रचे गये । रास शब्द सामान्यतः कथा द्वारा किसी नायक का यशोगान करने के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता था । जो भी काव्य रसमय हो उसे रास कहने की एक परिपाटी चल पड़ी थी इसलिए शास्त्रीय नियमों का कठोरता से पालन प्रायः लेखक नहीं करते थे और रास, प्रबंध तथा चरित काव्यरूपों का शास्त्रीय स्वरूप नियमों के बंधन तोड़ रहा था, इस शब्द का प्रयोग दर्शन, अध्यात्म, नीति और कर्मकाण्ड जैसे विषयों से संबंधित पद्यरचनाओं के लिए भी किया जाने लगा था जैसे यशोविजय कृत द्रव्यगुण पर्याय रास, नयचक्र रास, मानविजय कृत नयविचारसातनयरास इत्यादि । चौपाई शब्द का प्रयोग भी प्रायः सभी सामान्य काव्य रचनाओं के लिए किया जाने लगा था जैसे देवचंद कृत ध्यान
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