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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रतन सिषर नभ मैं छवि देत, देव देखि उपजावत हेति, रंगभूमि तिनि साला मांहि, ऐसी सोभा और कहुं नाहिं। तिनमें नर्तत अमरांगना, हाव भाव विधिनाटक घना, चंचल चपल सोभ बीजुली, जनु सोभा धन विचि ऊछली । किनर सुर कर वीणा लिए, गावत मधुर मधुर इक हिये, सुनि मुनि मोहैं कौतूहली, साता जिन सुमरै भूबली।' एकीभाव स्तोत्र--यह वादिराज सूरि के संस्कृत एकीभाव स्तोत्र का आलम्बन लेकर लिखी गई कृति है। इसकी रचना सं० १८१९ से पूर्व हो चुकी थी क्योंकि उस समय की लिखी इसकी प्रतिलिपि जयपुर के बड़ा मंदिर के पुस्तक भंडार में सुरक्षित है। भूधरदास ने भी एक एकीभाव स्तोत्र रचा था पर उससे इसकी भाषा सरल, रचना सरस और गति प्रवाहपूर्ण है। · पं० हीरानंद ने प्रायः भाषान्तरण किया है। इनकी किसी मौलिक कृति का पता नहीं चला है, पर अपनी रचनाओं द्वारा वे संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी तीनों भाषाओं के पारंगत विद्वान् सिद्ध होते हैं।
हेमकवि-अंचलगच्छ के आचार्य कल्याणसागर सूरि आपके गुरु थे। इनकी रचना का नाम 'मदनयुद्ध' है। यह सं० १७७६ की कृति है। इसका संपादन अंबालाल प्रेमचन्द शाह ने किया है; यह रचना आनंद शंकर ध्र व स्मारक ग्रन्थ में प्रकाशित हुई है। इसमें मदन और रति का संवाद है। कल्याणसागर सरि की संयम साधना से कामदेव पराजित हो जाता है, तो रति काम से कहती है -
और उपाय को कीजिइं ज्यो यह माने मोहे,
चूप रहो अजहूं लज्जा नहीं, काहा कहूं पीय तोहें । हेम कवि ने जोधपुर वर्णन गजल लिखी है। १७वीं शताब्दी से ऐसे नगर वर्णन की परम्परा खड़ी बोली में गजल नाम से प्रारम्भ हुई, ऐसी कुछ गजलों का नामोल्लेख इसी ग्रंथ के प्रथम खंड में किया जा चका है। सचित्र विज्ञप्ति पत्र, जो जैनाचार्यों को अपने नगर में पधारने व चातुर्मास करने के लिए विनती रूप में नगरवासियों द्वारा भेजे जाते थे, उनमें उस नगर का वर्णन प्रायः गजलों में लिखा जाने १. प्रेमसागर जैन -हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० २३० ।
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